एक चित्रकार कला, पहचान और क्वीयरनेस के बारे में बात करती है
करिश्मा दोराई द्वारा लिखित और चित्रित
अनुवाद: मिहीर सासवडकर
(AOI टिपण्णी क्वीयर – जो लोग रूढ़ीवादी लिंग पहचान को नहीं मानते और चाहते हैं की उनका उपनाम कुछ ऐसा हो जो एल.जी.बी.टी के मायनों से आगे बढे, और कितनी ही भावनाओं और संभावनाओं को अपने आड़े ले, वो अपने आप को अक्सर क्वीयर बताना ज़्यादा पसंद करते हैं । क्वीयरनेस – क्वीयर लोगों और विचारों से संबंधित बातें ।)
एक क्वीयर इंसान होने के नाते, ऐसी कला का निर्माण करना जो मेरे अस्तित्व से प्रेरित है, ख़ुद को व्यक्त करने का आवश्यक ज़रिया है। मैं ब्रैंड और स्ट्रैटेगी के क्षेत्र में काम करती हूँ, लेकिन मैंने ललित कला की पढ़ाई की है। मैं मेरे काम के अलावा चित्रण भी करती हूँ, क्वीयर मैगज़ीन Gaysi के लिए भी। इस तरह मैं मेरे व्यवसाय के लिए जो करती हूँ और मेरे शौक के लिए जो करती हूँ उन दोनों में नाता जोड़ने में मुझे मदद मिलती है, और फ़िर भी मेरी व्यावसायिक और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के बीच में मैं अंतर बनाए रख सकती हूँ।
मेरे लिए, क्वीयरनेस ऐसा शब्द है जो ना सिर्फ़ एक इंसान की व्यक्तिगत पहचान का प्रतीक है, लेकिन एक सामूहिक चेतना का भी, एक ऐसा अस्तित्व जिसमें सब लोग शरीक होते हैं और जो सुंदर रूप से जटिल, परतदार और सबको शामिल करने वाला है। मेरा काम, संयोगवश या जान बूझकर या दोनों कारण, मेरी इस सोच का प्रतिबिंब है।
मेरे लिए क्वीयर कलाकार होना क्या मायने रखता है? सच कहूं, तो शायद मैं किसी दूसरे क़िस्म की कलाकार नहीं बन पाती। अगर कला कलाकार के संदर्भ पर निर्भर है, तो फ़िर आदमी और औरत के रिश्ते की बारीकियां मैं नहीं दर्शा पाऊंगी, चूँकि मैं उस रिश्ते से उस कदर परिचित नहीं हूँ जैसे विषमलैंगिक लोग हैं । तो असली सवाल यह होना चाहिए, कि क्या मैं क्वीयर कलाकार हूँ या सिर्फ़ कलाकार हूँ? जब हेली कियोको ने अपना एल्बम Expectations (अपेक्षाएं) और उसके विडियो प्रकाशित किए, सब लोग उसे “Lesbian Jesus” (समलैंगिक औरतों के मसीहा) बुलाने लगे। और लोग उसे अक्सर पूछते हैं कि उसके सभी विडियो में लड़कियों को चूमते हुए क्यों दिखाया जाता है? और उसका जवाब है, “टेलर स्विफ़्ट के सभी गाने मर्दों के बारे में होते हैं और कोई यह शिकायत नहीं करता कि वो कुछ नया नहीं करती।”
इसलिए मुझे लगता है कि मैं मेरी कला के ज़रिये अगर क्वीयरनेस दर्शाती हूँ, फ़िर तो ऐसी कला आस पास की राजनीति और सामाजिक और व्यक्तिगत जटिलता के संदर्भ में ही जीती है। और क्योंकि यह कला है, तो मेरी राय में इसका उन बातों की दलदल में फंसकर रहना ज़रूरी नहीं जिन बातों से क्वीयर लोगों को रोज़मर्रा की ज़िंदगी में आम तौर पर उलझना पड़ता है। मिसाल के तौर पर मानो कि मैं एक अभिमानी पारलैंगिक (transwoman) स्त्री हूँ जो दूसरे लोगों के सामने ख़ुद की पहचान खुले आम दर्शाती हूँ। मैंने ख़ुद को बड़ी दृणता से सहनशील बना लिया है, उस बेढंगी, लड़ाकू झलक या आलोचना को झेलने के लिए जिसका मुझे अक्सर सामना करना पड़ता है और जिसे किसी भी इंसान को सहने की नौबत नहीं आनी चाहिए। लेकिन जब मैं एक पारलैंगिक स्त्री को कला या चित्र में व्यक्त करती हूँ, लोग रुकते हैं, देखते हैं, और पल भर के लिए ही ना सही, वो आलोचना या पक्षपात करना भूल जाते हैं और उसे उसके सच्चे अंदाज़ में देखते हैं – सुंदर, भावात्मक, मानवीय, सच्ची । और अगर आप काफ़ी बार कला के ज़रिये ये कर पाओ, तो आशा है कि वो कला आलोचना के उस भाव को खुलेपन और स्वीकृति में बदल देगी।
जब मैं किसी क्लाइंट के लिए कोई व्यावसायिक काम करती हूँ, वह प्रोजेक्ट करने के लिए मैं उनकी परख और अनुभवों पर निर्भर रहती हूँ। ऐसा हर बार नहीं होता कि मेरा उस प्रोजेक्ट के साथ गहरा लगाव हो। लेकिन जब मैं Gaysi के लिए कुछ बना रही होती हूँ या कोई दूसरा क्वीयर संबंधित काम करती हूँ, मैं क्वीयर इंसान होने के मेरे अनुभवों के भंडार की सहायता लेती हूँ और मेरा ये मानना है कि इस कारण मैं अपने काम में एक ऐसी परख ला पाती हूँ जो शायद कोई दूसरा ना ला सके। देखा जाए तो इस तरह भारतीय संदर्भ में स्थित काम करने का मुझे मौका मिलता है। हर एक शख़्स के सांस्कृतिक संदर्भ अलग होते हैं और भारतीय कलाकारों में यह और भी स्पष्ट रूप से देखा जाता है, चूँकि हम पर होने वाले प्रभाव विशाल और विभिन्न किस्म के हैं जो एक साथ विश्व संबंधी भी है और आंचलिक भी। इस तरह हमें ऐसा कुछ निर्माण करने का मौका मिलता है जो हमारे अनुभव पर आधारित है। मिसाल के तौर पर, Gaysi Zine के तीसरे अंक के पृष्ठ पर एक किराने की दुकान दिखाई गई है। इस दुकान में विविध वस्तुएं हैं । अगर आप उन्हें ग़ौर से देखें तो उनमें एक क्वीयर रुख नज़र आएगा। ये रोज़मर्रा की इस्तेमाल की चीज़ों के साथ एक छोटा खेल करके बनाया गया है, मसलन,माचिस की डिबियों पर लिखे नामों में छोटे परिवर्तन जो उनका रुख कुछ क्वीयर बना देता है। अगर मेरे व्यावसायिक और अव्यावसायिक काम में कोई समानता है, तो वो होगी दोनों में बारीकियां दर्शाने की। बारीकियों के ज़रिये कोई कहानी बतलाने की कोशिश वो एक धागा है जो शायद मेरे अलग अलग काम को एक साथ जोड़ता है, डिज़ाइन और चित्रण दोनों के क्षेत्रों में। मैं हर बार तो सफल नहीं होती, लेकिन कोशिश में लगे रहना ही मेरा लक्ष्य है!
२०१० में जब मैंने पहली बार चित्रण करना शुरू किया, क्वीयर चित्र बहुत कम दिखाई देते थे। वैसे अगर देखा जाए, तो आधुनिक भारत में क्वीयर ख़यालों की पहले से अपनी जगह रही है, लेकिन मेरी नज़र में कुछ पहलू ऐसे थे जो दर्शाए नहीं गए थे। क्वीयर कला को देखकर मुझे अक्सर लगता कि उनमें उद्देश्य था, कला थी लेकिन उत्कृष्टता हमेशा ना थी । शायद यह इसलिए कि उस कला को पर्याप्त आर्थिक या नैतिक समर्थन नहीं मिलता था। आज का माहौल तीन साल पहले के माहौल के मुकाबले बहुत बदल गया है। अब, क्वीयर कला की मात्रा बहुत ज़्यादा बढ़ गई है, क्वीयर होने के बारे में बातचीत कई ज़्यादा बढ़ी है, और वो बातचीत कई ज़्यादा जोशीली और संवादात्मक है। Homegrown विविध, गहरी पहुँच वाला काम प्रकाशित करता है, Queer Ink बड़ी मात्रा में फ़िल्में और विडियो बना रहा है और AOI, The Ladies Finger और Mint जैसे प्रकाशन ना केवल क्वीयर नज़रियों को शामिल करते हैं बल्कि जिन दायरों में लिंग और लैंगिकता सीमित हैं, उन्हें सचेतन और ज़िम्मेदार होकर विस्तृत करने की कोशिश में हैं ।
Gaysi के लिए जो मैंने पिछला चित्रण किया वो था Gaysi Zine के पांचवे अंक का पृष्ठ, जिस अंक का नाम था ‘All That We Want’ (हमारी ज़रूरतें) । इस चित्रण में उस अंक के विविध लेखों का निरूपण किया गया था, लेकिन अगर केवल उन चित्रों को अलग से देखा जाए, तो वह इतने क्वीयर भी नहीं पेश आएंगे । वो इसलिए कि कई सालों से कई लोग – कलाकार, लेखक, सक्रियतावादी (activists) – संदर्भ स्थापित करने का काम करते आ रहे हैं। चूँकि ऐसे लोग हैं जो विश्व को और क्वीयर बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, क्वीयर होना कैसा लगता है उसे स्पष्ट रूप से दर्शाने की हमें ज़रुरत नहीं पड़ती।
मेरे ख़ुद के प्रेरणा स्त्रोतों में, एक प्रकाशन संस्था और उस से जुड़े कलाकारों का काम ख़ास मायने रखता है – वो है Blaft। तमिळ Pulp Fiction की श्रृंखलाओं से लेकर Kumari Loves a Monster (कुमारी राक्षस को चाहती है) और Times New Roman & Countrymen तक, उनका काम मज़ेदार तरीक़े से बेअदब है, सुंदर रूप से दक्षिण भारतीय संदर्भ पर आधारित है और साहित्य, कला और डिज़ाइन को जोड़ता है। जब भी मुझे प्रेरणा की ज़रुरत होती है तब मैं हमेशा उनकी किताबें पढ़ती हूँ। दूसरी कलाकार जिसके साथ मुझे काम करने का विशिष्ट आनंद मिला, और जो मेरे मुताबिक आगे बढ़कर महत्त्वपूर्ण चित्रकार बनेगी (अगर वो अब तब नहीं बनी है तो), है सानिका फावड़े। होशियार, अति विस्तृत और असली, मुझे उसका काम देखना बहुत पसंद है और वो मुझे याद दिलाता है विस्तृत होना और सहज होना कितना महत्त्वपूर्ण है।
मैं ऐसी कला बनाना चाहती हूँ जो मेरा प्रतिबिम्ब हो। ये सही है कि वह कला मुझे सच्ची लगनी चाहिए, लेकिन साथ साथ मेरा काम ज़्यादातर मेरे दर्शकों के लिए होता है। मैं चाहती हूँ कि वे उसे समझें, और उन्हें भी वह सच्चा लगे। मैं चाहती हूँ कि उसे देख कर उन्हें आत्मीयता महसूस हो, आश्वासन और ज़हन में एक आराम।