"आपकी त्वचा पर मरून ही फबता है" और इस किस्म की और सलाह, जो गोरी न होने पर मुझे सुननी पडी और मैंने कैसे इस सुने को अनसुना किया । - Agents of Ishq

“आपकी त्वचा पर मरून ही फबता है” और इस किस्म की और सलाह, जो गोरी न होने पर मुझे सुननी पडी और मैंने कैसे इस सुने को अनसुना किया ।

– राम्या पांड्यन (आयडिया स्मिथ)

 

इंट्रोडक्शन के तौर पे: अपने को नीरस रंगों के पीछे क्यों छिपाना? मुझे तो होंठों पे की गयी लिपस्टिक की दबंग कलाकारी – चमकदार रंग, ज़रदोज़ी डिज़ाइन्स, पोल्का डॉट्स – सबसे ज़्यादा प्रिय है।

मुझे ख़ूबसूरती की सैर पर जाना बेहद पसंद है। यही वो जगह है जहाँ मैं अपने शरीर और उसको रंगने को समर्पित पूरे उद्योग का आनंद ले सकती हूँ। पी.एम.एस हो या कठिन ब्रेक-अप्स, या फिर आमतौर पर बीतता बुरा सा दिन, हर मर्ज़ की दवा है ये। मैंने ९० के दशक के छोर पर शुरुआत की, तब, जब मेरे कदम किशोरावस्था में बस पड़े ही थे और मैंने अपने चेहरे पे मेक-अप लगाने की इजाज़त बड़ी जद्दो-जेहद के बाद पायी थी। फिर तो स्वाभाविक ही था कि मैंने अपने शरीर के बारे में, सारी दुनिया को विशेषयज्ञ माना और दुनिया भर की राय पर ख़ास ध्यान देती रही।

मेरी पहली लिपस्टिक का शेड मरून था और यह एक मात्र ऐसा रंग था जिसपे बाकियों ने समर्थन का ठप्पा लगाया था। इस रंग को मैं इंडिया का खुद से शर्माता हुआ प्यार कहूंगी। लिपस्टिक वो बला है जो लोगों को याद दिलाती है कि औरतों के पास मुँह हैं (जो बोल सकते हैं) और मेरा मानना है कि ज़्यादातर लोग इस बात से मुंह छिपाते हैं। तो हमें “ख़ास मौकों” पे एक ऐसा गहरा रंग पहनने की अनुमति है जो शाम के अंधेरों में यूं भी ज़्यादा दिखता नहीं – शाम, यानी दिन का वो समय,जब मेक-उप लगाना उचित समझा जाता है। हर उम्र की महिला इस स्वीकृत रंग के आस-पास डेरा जमा चुकी है। इससे हल्का रंग किसी गोरे व्यक्ति पे चल जाएगा, लेकिन सिर्फ तब तक जब तक ये ‘ज़्यादा लाऊड/चटकीला’ न हो। क्योंकि औरतों को अपने होंठों के ज़रिये भी चीख़ने की आज़ादी नहीं है।

मेरे पूर्वज चावल के देश से हैं, जिनका गेहूं, या किसी धान्य से कोई नाता नहीं है, रंग के मायनों में भी। तो मैं कभी उस त्वचा के रंग के स्केल पे फिट  नहीं हुई जो “गोरा” से “गेहुआँ” तक सीमित है। फैशन गुरु से नेक-दिल पड़ोसियों तक, हर कोई मुझे सांवले होने की निराशाजनक दुर्दशा से बचाना चाहता था। इंडिया ने फैशन उद्योग का स्वागत अपने “प्राकृतिक/आयुर्वेदिक” मिश्रणों से किया और तब मुल्तानी मिटटी एवं मलाई के सितारे चमकने लगे। बेमेल कन्सीलरज़ को मेरी त्वचा पे रगड़ा गया इस उम्मीद में कि उनसे होने वाली लाली से मेरी त्वचा, उस रंग के स्केल के किसी रंग से मेल खा जाए। गोरेपन की क्रीम और जलने वाले ब्लीच के बारे में लोग खुसपुसाते, पार्लरों में और लड़कियों के बाथरूम्ज़ में। और आखिर में जिन हिस्सों के बारे में कुछ नहीं किया जा सकता था, उनको छिपाने पे ज़ोर डाला जाने लगा। मुझे ढक कर रहने की सलाह दी गयी, गहरे रंगों, ढीले लिबासों और लम्बे बालों में। हम गहरे रंग वाली लड़कियां हैं, हमें अपने आप को मिटाना सिखाया जाता है।

मैं जानती हूँ कि जब माइकल जैक्सन ने “मैं अपनी ज़िंदगी एक रंग बनकर नहीं जीने वाला”/”आय ऍम नॉट गोइंग टू स्पेंड माय लाइफ बीइंग ए कलर” गाया, तो उसका मतलब क्या था। रंगों की राजनीति के बहुत पहलू हैं। आपने गहरे रंग वाली लड़की को कितनी बार शॉर्ट्स, सिंग्लेट या बैकलेस ड्रेस में देखा है? हम जैसी कितनी लड़कियां अपने बाल छोटे रखती हैं? क्योंकि ऐसे असंस्कारी चुनाव ज़्यादा चमड़ी दिखाते हैं। खूबसूरती पे नाज़, जो यूं भी

औरतों के लिए एक गुनाह माना जाता है, सांवली औरतों के लिए एक अकल्पनीय पाप बन जाता है।

लेकिन चमकदार रंग मुझे अपनी तरफ आकर्षित करते हैं, और इस चुनाव की मुझे कीमत अदा करनी पड़ती है।’ ए काली’, किसी ने स्कूल कॉरिडोर में चिल्लाते हुआ कहा जहाँ में अपने नीऑन नारंगी रेनकोट से पानी झटक रही थी। जब मैंने एक फ़ायर-इंजन सी लाल टी-शर्ट में कॉलेज में प्रवेश किया, दो लड़कों ने सनग्लासेस पहन लिए, और मेरी तरफ इशारा करते हुए हंसने लगे। मेरी इलेक्ट्रिक ब्लू ऑफिस शर्ट ने मुझसे पहले कमरे में एंट्री मारी, पहले खुसफुसाहट

और फिर मेरी टेबल पे छोड़े गए बेनाम पर्चों का सामना करते हुए। ‘मरून आज़मा कर देखो’, मुझसे कहा गया, ‘या फिर नेवी ब्लू या ब्राउन क्योंकि वो तुमपर जचेंगे’। मेरे फैशन चुनाव एक सौदा बन गए उस त्वचा के

स्केल के साथ जिसपर मेरे रंग के लिए कोई जगह ही ना थी।

मैंने अपने पर डाली पाबंदियों को पहले उजले रंगों से लांघा, और फिर उन रंगों को ही अपना अस्त्र बनाया। किसी दिन एक पैरेट ग्रीन ब्लाउज बिना मेक-अप के, किसी और दिन जीन्स के साथ काली नेल पॉलिश। २००० के दशक में उज्जवल रंगों को ज़्यादा मान्यता मिली और मेरे लिए वो अब पहुँच के बाहर नहीं थे। मैं अब वयस्क थी, इसलिए खुद के पहनावे पर अब मेरा नियंत्रण था, लेकिन उसपे अब भी सामाजिक अपवाद लागू थे। मैंने पहनावे को एक खेल बना लिया था – जिसमें मैं यह देखना चाहती थी कि सीमाओं के अंदर रह कर किस तरह नियम तोड़े जा सकते थे?

एक मोतियों की माला को बेल्ट बना डालना? एक बहु-रंगे स्कार्फ को अपने हैंडबैग पर लपेटना? और हमेशा, हमेशा चमकीले रंग का इस्तेमाल। हमेशा नेवी ब्लू, ब्लैक और ब्राउन के साथ छुप्पन-छुपाई। ये सब करके मेरा आत्म विशवास बढ़ा। इसने लोगों को अक्सर चकित किया (और कभी-कभार नाराज़ भी)।

मेरे लेट ट्वेंटीज तक, मैंने अपनी मेकअप में रंगों की दुनिया को और विस्तार दिया। ग्लॉस, ग्लिटर, फ्यूशिया होंठ और बर्फ से नीली पलकें – मेरा रोम-रोम रंगों के साथ अपने इश्क़ को ज़ाहिर कर रहा था। इसने लोगों, दोस्तों और अजनबियों को परेशान करना कभी बंद नहीं किया। मुझे क्रेजी ड्रेसर का नाम मिल गया। मुझे अचम्भा इस बात से हुआ कि अगर कोई गोरी लड़की मुझ सा तैयार होती, तो उसपर कोई आपत्ति नहीं करता। जैसे-जैसे मेट्रोसेक्शूऐलिटी (एक ऐसी जीवनचर्या जिसमें शहरी विषमलैंगिक नौजवान पुरुष, खुले राजनैतिक विचार अपनाते हैं, फैशन में दिलचस्पी दिखाते हैं, और ये मानते हैं कि उनकी पसंद बहुत सलीके वाली और सही है) हम आम लोगों में आम बात बनी, इस आंदोलन के सबसे आगे गोरी/गेहूँई त्वचा वाले आदमी थे। मैं अक्सर महसूस करती थी कि मैं अकेली दिखाई -देने- वाले भूरेपन का झंडा लिए चल रही हूँ। दूसरे ग्राहक खुलकर मेरी ओर फूटी नज़र से घूरते तब, जब मैं स्पार्कल वाले सेक्शन में प्रवेश करती, पर और गोरे ग्राहकों से हँसते बोलते, भले ही वो अजनबी थे। सेल्ज़ वाले मुझे स्किन-क्रीम के काउंटर की तरफ धकेलते, मुझे आश्वासन देते हुए कि वो ये “भद्दे टोन” को ठीक कर सकते थे और हमेशा ये कहते हुए कि, “तुम्हारे रंग पर तो मैरून हे जंचेगा।”

मुझे ये एहसास हुआ है कि आपको शर्मिन्दा करने वाले इस सिस्टम को चलने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण साथी की ज़रुरत होती है – आपकी। अगर मैं शर्मिन्दा होने से इंकार कर देती, तो उस शर्मिन्दा करने की कोशिश का क्या बचता? कुछ नहीं, बस, इस तरह, मुझे जो अच्छा लगता, बदल कर मुझे पे अच्छा लगने लगा। विद्रोह करने की मेरी ज़रुरत कम होती गयी और मैं रंगों को सिर्फ इस वजह से अपनाने लगी क्योंकि वो मुझे पसंद थे। मेरी अलमारी में कोई भूरा रंग नहीं है क्योंकि मेरी अपनी काया पे ये रंग काफी मात्रा में मिलेगा। लेकिन फ्लोरोसेंट ग्रीन? सनशाइन येलो? हॉट पिंक? हेलो पिकासो! मेरे निजी शेड कार्ड में इन सभी रंगों का स्वागत है।

पिछले साल, मैंने खुशी-खुशी बोल्ड लिपस्टिक ट्रेंड को भी अपनाया। क्या आपने ब्लू कहा? रिहाना, साइड हो जाओ, मैं तुम्हारे बोल्ड कलर देखती हूँ और अपनी अनोखी अदा से ये फंकी डिज़ाइन पेश करती हूँ। मेरे अंदर का क्रेज़ी ड्रेसर मेरे होंठों पे पट्टों/स्ट्राइप्स, पोल्का डॉट्स, फिलीग्री का काम, और कॉमिक कला के रूप में भी उभर कर आती है। मुझे काला और सफ़ेद दो और मैं उसे अपने होंठों पे एक बिसात/चेसबोर्ड बना दूंगी। या फिर एक यिन-यांग चिन्ह। मेरे होंठ ना चिपटे हैं, ना फुसफुसाते हैं। मेरे होंठ गुर्राते हैं।

हालही में, मैंने एक सुनहरे रंग की लिपस्टिक खरीदी, एक ‘गहनों से सजे मुँह’ लुक की कोशिश में। मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि ये लिपस्टिक मेरे होंठों पे बिलकुल नहीं दिख रही थी, चाहे मैं कितनी ज़ोर से इसे लगाने की कोशिश करूँ। तब मुझे एहसास हुआ कि ये रंग बिलकुल मेरे शरीर के सुनहरे रंग से मेल खाता है! अब मैं जान चुकी हूँ कि कोई रंग मेरे ऊपर अजीब नहीं लगता, फैशन उद्योग यूं ही बड़बड़ाता है। असल में बात ये है कि, गोल्ड को फीका करना बहुत ही मुश्किल है। और मेरे पास तो अपना शरीर है, जो मेरे लिए इस रंग को अनियंत्रित रूप से सप्लाई कर सकता है। सारे शरीर सुन्दर, कलात्मक हैं, और मेरा, सुनहरे रंग से फ्रेम किया गया है। इस शाही रंग से दमकते शरीर के लिए ख़ूबसूरती का भ्रमण अवाम के लिए परेड समान है। कहिये,क्या आप देखने आ रहे हैं?

राम्या पांड्यन, जिन्हें आयडिया स्मिथ के नाम से भी जाना जाता है, एक लेखिका, ब्लॉगर और प्रदर्शनीय कलाकार/परफॉरमेंस आर्टिस्ट हैं। वो अल्फाबेट साम्बार नामक एक रचनात्मक कम्युनिटी चलाती हैं और सेक्सोनॉमिक्स नामक एक फेमिनिस्ट बेंड की को-फॉउंडर हैं। राम्या ट्वीट करती हैं, ब्लॉग लिखती हैं, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पे @ideasmithy की हैंडल चलाती हैं।

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