मैं समझती थी कि कंबल के नीचे किसी के पास लेटकर उसे चूमने से ही सेक्स हो जाता था। कितनी ग़लत थी मैं।
अंकिता सालिआन द्वारा लिखित
चित्रण: मैत्री डोरे
मिहीर सासवडकर द्वारा अनुवादित
अगर आपने मराठी पिक्चर बालक पालक देखी है, तो आप थोड़ा बहुत तो समझ गए होंगे मैं क्या कहना चाह रही हूँ। लेकिन आप में से जिन लोगों को उस पिक्चर के बारे में कुछ नहीं पता, प्लीज़ यहाँ मेरी कहानी पढ़ लीजिए। हो सकता है कि आप में से कुछ लोगों ने शायद वही महसूस किया होगा जो मैंने किया, या हो सकता है नहीं। मेरी ये कहानी बयान करती है कि सेक्स की ओर मेरा नज़रिया कैसे बदला। मैं कभी इस सेक्स को घृणा और डर की नज़र से देखती थी। कैसे मैं बाहें खोलकर उसे स्वीकार करने लगी, मेरी कहानी में इस के राज़ पढ़िए!
मैं बिल्कुल मध्यम वर्गीय परिवार में पली बढ़ी। हालाँकि मैं २००० के दशक में बड़ी हुई, मुझे सिखाए गए ‘संस्कार’ १९९० के दशक के थे। हमारे ड्राइंग रूम में पुराने ज़माने का एक बड़ा टी वी हुआ करता था। मौज मस्ती के लिए उसपर हम ज़्यादातर दूरदर्शन के चैनल ही देखते थे। तो दूरदर्शन के कार्यक्रमों ने मुझे यक़ीन सा दिला दिया कि सिर्फ़ शादी शुदा लोगों को एक कमरे में साथ रहना चाहिए। और ये भी कि सुहाग रात में बस इतना ही होता है कि को या तो दोनों शर्माकर आपस में मुस्कुराते हैं और बत्तियाँ बुझ जाती हैं या फिर दो फूल नटखट अंदाज़ में एक दूसरे के बग़ल में हिलते हैं। मेरी समझ थी कि सुहाग रात में इसके सिवा और कुछ नहीं होता था।
जब सेक्स के सीन टी वी पर अचानक से आ टपकते, तो बड़े बुज़ुर्ग मुझे कहते कि वो लोग जो टी वी पर कर रहे थे, वो बुरा था और बच्चों को वैसी चीज़ नहीं देखनी चाहिए। उन दिनों दिखाए जाने वाले बारबी और डिसनी के कारटून में कारटून कैरैक्टर अक्सर एक दूसरे को होंठों पर चूमते। मेरी बहन ऐसे सींज को ‘अडल्ट कॉन्टेंट’ बतलाती। उसकी राय में ऐसे सीन सेक्स के सीन से थोड़े कम विवादात्मक थे। वो कहती कि मुझे ऐसे सीन १८ बरस की उम्र के बाद ही देखने चाहिए थे। एक दफ़े जब मैंने उससे कॉन्डम के बारे में पूछा तो मुझे थप्पड़ भी खाना पड़ा था। उसका जवाब यही था कि आइंदा मुझे किसी से भी ऐसा बेहूदा सवाल नहीं पूछना चाहिए। लेकिन ये स्वाभाविक था कि जैसे जैसे मैं बड़ी होती गई, वैसे वैसे मेरे मन में ‘ग़ैर-संस्कारी’ सवाल भी बढ़ते गए। लेकिन किसी से भी उन सवालों का जवाब मांगने में मुझे डर लगता था।
आख़िरकार मैं टीनेजर बन ही गई। दूसरे टीनेजरों की तरह मेरा भी सहेलियों का एक ग्रूप था। मराठी टीनेजरों की बोलचाल की भाषा में सेक्स या ‘उस चीज़’ को ढिचॅक ढिचॅक कहते हैं। कोई ताज्जुब कि हम सब सहेलियाँ भी उसके बारे में बातें करने लगीं। इम्रान हाश्मि की वजह से हम ये बातें खुलेआम कर सकती थीं और इसलिए इम्रान हाश्मि को मेरा थैंक यू! शुरू शुरू में तो हमें उसकी और उसकी फ़िल्मों के ख्याल से ही घिन आती। लेकिन फिर हम सोच में पड़ गए कि लोग ढिचॅक ढिचॅक आख़िर करते क्यों हैं। सच्चाई की इस खोज में हममें से कुछ लड़कियों ने रिसर्च करना शुरू किया। जायज़ बात है कि मेरे पिछले अनुभवों के कारण मैंने कोई रिसर्च विसर्च नहीं किया। मेरी सहेलियों ने बड़े कष्ट उठाए। सबसे बुरी बात ये थी कि उस ज़माने में सेल फ़ोन और सस्ते इंटरनेट जैसी कोई चीज़ थी ही नहीं। इसलिए सेक्स पर जानकारी मिलना बहुत कठिन था। जीओ के बारे में अंबानी ने उन दिनों सोचा तक नहीं होगा।
हालाँकि उन दिनों हमें ये तो नहीं पता था कि सेक्स के दौरान होता क्या है, हमें ये ज़रूर लगता था कि सिर्फ़ बुरे लोग ढिचॅक ढिचॅक करते हैं। हमें लगता था कि किसी लड़के और लड़की का एक दूसरे के बहुत नज़दीक आकर सोना ही सेक्स होता है। अब हमारे माँ बाप ने तो हमारे सामने वैसा कभी नहीं किया था। हमें ये भी लगता कि सेक्स में लोग एक दूसरे को बदन पर हर जगह चूमते थे और अपने कपड़े उतारते थे (चूंकि बचपन से हमें सिखाया गया था कि कपड़े उतारना शर्मनाक बात है, तो फिर इस ख़याल को हम बर्दाश्त ही नहीं कर पाए)। फिर हमें कुछ चौंकानेवाली बातें पता चल गईं – कि सेक्स करने से लोगों को मज़ा भी आ सकता था। और ये, कि दो से ज़्यादा लोग भी मिलकर सेक्स कर सकते थे!
लेकिन सबसे बुरी ख़बर तो आनी बाकी थी। हमारी सहेली को उसकी स्कूल की किसी सहेली से पता चला कि बच्चे पैदा करने के लिए ढिचॅक ढिचॅक करना ज़रूरी था। जब ये बात उसने हमें बताई तब मानो हमपर आसमान टूट गया। जब आप चर्चगेट स्टेशन पर खचाखच भरी बोरिवली लोकल में भागते हुए चढ़ जाती हो और आधे रास्ते में आपको ये पता चल जाता है कि बोरिवली पहुंचकर
ट्रेन आपके घर से सबसे दूर प्लॅटफ़ॉर्म क्र. ८ पर जा जा रुकी है, तब आपको जैसा लगता है ना, हमको वैसा ही लग रहा था। कुछ लम्हों के लिए तो हम सब सुन्न पड़ गईं, क्या कहना है हमें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। अलग अलग फीलिंग्स और ख़याल हमारे दिमाग में दौड़ लगा रहे थे ।
इन सारी बातचीतों में सबसे बुरा तो तब लगा जब हमने ये जाना कि “हमारे माँ बाप और दादा दादी भी वो करते हैं।” हमपर इतना बुरा असर हुआ कि हम हमारे माँ बाप की आँखों में आँखें डालकर बात भी नहीं कर सकते थे। बच्चे कैसे बनते हैं. उसके बारे में हमारे मन में बचपन से कई थिओरियाँ बनी थीं (सब हमारे इन्हीं बुज़ुर्गों की बदौलत) – “भगवान बच्चों को भेजते हैं” और “लड़कों के बहुत पास बैठकर आप प्रेगनंट हो जाओगी”। एक मिनट में उन सभी थिओरीज़ की धज्जियाँ उड़ गईं। ये सब जानने से जो परेशानी हुई वो मिलिंद सोमण की शादी की जानकारी से भी बुरी थी! अपने माँ बाप पर भरोसा करना भी हमारे लिए मुश्किल हो गया। ख़ैर, सेक्स पर हमारे विचार अब बदलने लगे थे। हम सेक्स को दूसरी किसी मामूली बात जैसे देखने की कोशिश में उलझे हुए थे।
अब हम सेक्स की इस दुनिया की और खोज बीन करने लगे। हमें ‘ब्लू फ़िल्मों’ के बारे में पता चल गया। हमें लगा कि हमें उन फ़िल्मों से सेक्स पर जानकारी मिलेगी। लेकिन तब तक हमने कभी कोई ब्लू फ़िल्म देखी नहीं थी। ऐन वक्त पर फिरसे इम्रान हाश्मि हमारे बचाव के लिए आ गया। ब्लू फ़िल्मों के पॉर्न के बजाय उसकी फ़िल्मों के गानों से हमें सेक्स पर जानकारी मिलने लगी। वो हमारा सेक्स गुरू बन गया। सेक्स एजुकेशन के नाम पर हमें जो सो ज्ञान मिला, सब उसकी और उसकी हीरोइंज़ की बदौलत था। ऐसे दो और साल बीत गए और मेरी कुछ सहेलियाँ दसवी में चली गईं। इसका फ़ायदा ये था कि सेक्स के बारे में कुछ सही जानकारी हम तक पहुँचने लगी। और एक चौंकानेवाली बात हमें पता चल गई – सेक्स होने के लिए एक पीनिस को एक वजायना के अंदर/यानी शिश्न को योनी के अंदर जाना होता था! हमें चौंकाने से भी ज़्यादा इस बात ने हमें डरा दिया। हम सब लड़कियाँ थीं और हमने कभी सोचा भी नहीं था कि किसी की वजायना के अंदर कोई चीज़ घुस सकती है। अब हमें सेक्स भयंकर लगने लगा।
एक साल से ज़्यादा तक अपने माँ बाप को बहलाने, फुसलाने और समझाने के बाद, आख़िरकार, बड़ी मुश्किल से, मेरी एक सहेली को इंटरनेट कनेक्शन वाला सेल फ़ोन मिल ही गया। और वो बन गया असली पॉर्न देखने का हमारा ज़रिया। तब मैं ९वी क्लास में थी। उन दिनों हम इतना सोचते नहीं थे कि सेक्स के दौरान मज़ा भी आता होगा या दर्द होता होगा। पीनिस के वजायना के अंदर जाने के ख़याल से ही हम सुन्न पड़ जाते (ख़ासकर इसलिए, क्यूंकि तब तक तो मैं ये ही समझती थी, कि कंबल के नीचे किसी के पास लेटकर उसे चूमने से ही सेक्स हो जाता था)।
हमने देखा कि पॉर्न में तो एक्टर ख़ुशी ख़ुशी सेक्स कर रहे थे (या मज़ा लेने का ढोंग कर रहे थे)। सेक्स करने से मज़ा भी आ सकता है इस बात ने हमें चौंका दिया। और जबकि हिंदी या हॉलीवुड फ़िल्मों में एक्टर एक ही पोज़ीशन में सेक्स किया करते थे, हमने देखा कि पॉर्न फ़िल्मों में तो एक्टर कई पोज़ीशन में सेक्स कर रहे थे। यही नहीं, पर दोनों एक्टरों का आपसी कामुक आकर्षण हमें सच्चा लगा। उसके बाद सेक्स की ओर हमारा नज़रिया बदलने लगा। हम समझने लगे कि सेक्स दो लोगों के बीच में की गई मज़ेदार और आनंददायक चीज़ भी हो सकती है।
एक साल बाद, १०वी क्लास में मुझे सेक्स पर औपचारिक रूप से शिक्षा मिल ही गई। हमारे कोचिंग क्लास में दिखाए गए एक एडुकेशनल विडियो के ज़रिए हमें सेक्स की पूरी प्रक्रिया समझाई गई। कॉन्डम कैसे दिखता है, ये मैंने पहली बार उस विडियो में देखा। सेक्स अब कोई रहस्य नहीं था – वो हमारी पढ़ाई का हिस्सा बन गया, जिसकी हमें पूरी की पूरी जानकारी मिल रही थी। लड़कों के साथ सेक्स पर चर्चा करने में हमें अब भी थोड़ी शर्मिंदगी थी, लेकिन मेरे लिए धीरे धीरे वो भी चली गई। और फिर सेक्स की ओर मेरा घृणा और डर से भरा नज़रिया पूरी तरह से बदल गया और मैं सेक्स को दूसरी किसी मामूली चीज़ जैसे समझने लगी।
मेरी राय में सेक्स के मामले में सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो ये है कि दो लोगों में आपसी मंज़ूरी के साथ सेक्स होना चाहिए और अपनी राय दोनों को आपस में खुलकर बांटनी आनी चाहिए। शायद और कोई बात मायने नहीं रखती। मुझे ये भी लगता है कि सेक्स की जानकारी सही उम्र में सभी बच्चों को देनी चाहिए ताकि यह जानकारी पाने के लिए बच्चों को सदमों से गुज़रना नहीं पड़े। और उनके सभी सवालों के जवाब के लिए बेचारे इम्रान हाश्मि को ही तंग न करना पड़े!
अंकिता २२ साल की छात्रा है जिसकी ज़िंदगी किसी खंडहर जैसी बन गई है (इसलिए कि वो आर्किओलोजी सीख रही है)। वो पुराने, घिसे पिटे ख़यालातों के बीच में पली बढ़ी। उसका अधिकतर समय पुरानी सोच को भुलाने में बीतता है। बाकी समय में वो दबाकर खाना खाती है, मीम शेयर करती है और हँसने हँसाने के नए तरीक़े ढूंढती है।
Amazingly written!! Very well expressed thoughts and I could totally relate with this. Stereotypes are meant to be broken!!
Keep it up!!
Excellent
Whoaa Ankita !!! Quite commendable …
Smooth tongued and well interpreted…actually such topics should be raised by the ppl to enhance their kids knowledge since from childhood itself which will help them in their rearing❤
Well done Ankita!!! I am sure many of us can relate to this.. Superb!!!
Very well written ..