मेरे साथ, एक सफर पे चलो।- एक इरोटिक कविता - Agents of Ishq

मेरे साथ, एक सफर पे चलो।- एक इरोटिक कविता

 कविता : किरण काकड़े द्वारा

चित्रण: मन्नत खन्ना द्वारा

अनुवाद: नेहा द्वारा

 

 

मैं अपने होठों से तुम्हारे सीने के किलोमीटर तय करूं,

या शायद कभी ट्रेन पे भी चढूं,

तो कभी,

तुम्हारी गर्दन तक जाती सड़क पे, कई ट्रामों में सफर करूं।

बिना टिकट।

पकड़ सको तो पकड़ो मुझे।

और जबजब पकड़ ना पाओ, तुम्हारी शर्ट का एक बटन खोल दूं।

 

जब हम हाइवे पर निकलें, मैं पिछली सीट पे बैठ जाऊं।

पर जब भी सागर के तट आएं, मैं ड्राइवर बन जाऊं।

लहरें सागर से आएंगी,

पर तुम्हारे किनारों से टकराएंगी।

 

फिर जब हम रेगिस्तान की ओर बढ़ें, और तुम्हारे पहिए मेरे हाथ में हों,

तब, मुझे नहीं लगता,

हमें पानी की चाह होगी।

तुम्हारे होंठों को चूम, तुम्हें मृगतृष्णा दिखा दूंगी।

 

तूफान से भरा आसमान शायद हमें देख डरे

खासकर तब, जब हम हमारे बदन एक दूजे संग भिड़ें।

हमारी आत्माओं में बसे काले बादल टकरा पड़ें,

और मैं हांफने लगूँ।

हर सांस जैसे बिजली की गड़गड़ाहट हो।

उसका शोर बढ़ता जाता है तेज़ी से 

तुम्हारी कड़कती बिजली के हर वार पर।

 

 “रुको मत।

 और देखो ना, फिर भी,

 बारिश कहीं और ही हो रही।

 

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