लेखिका – रोग़ हसीना
चित्रण – देबस्मिता दास
अपने सेक्सुअल वजूद की तलाश में निकली एक युवा लड़की
‘हेलो, मेरा नाम टीना है और मैं अपने आप को छूती हूं।’
अपनी ही सेक्सुएलिटी की बात करते हुए मुझे लगता है कि मैं अपनी पहली एए मीटिंग (ऐल्कोहॉलिक एनॉनिमस?) शामिल हुई हूं। उतनी ही नर्वस और उत्साहित हूं। लेकिन करना है तो करना है… इसलिए चलिए शुरु करते हैं!
सेक्स से मेरा पहला वास्ता एक डर्टी जोक के बहाने हुआ। मेरी दोस्त पेंसिल और शार्पनर की मिसाल देकर फुसफुसा रही थी और हंसती जा रही थी। मुझे मतलब तो समझ आया नहीं, लेकिन मैं फिर भी उसके साथ हंसने लगी। 12 साल की उम्र में आप इसी तरह साबित करते हैं कि आप कूल हैं।
मेरे लिए शुरुआत धीमी लेकिन लगातार रही – धीरे-धीरे फ़िक्शन नॉवलों में मुझे सेक्स के छोटे-छोटे विवरण मिलने लगे, और फिर मिल्स एंड बून्स के ज़रिए तो भरपूर जानकारी मिलने लगी। इन रोमांस/इरॉटिक नॉवलों में सेक्स ही प्लॉट हुआ करता था।
जब मैं 21 की हुई तो फ़ैसला किया कि मैं मैस्टरबेट करूंगी (जी हां, आपने बिल्कुल सही सुना) और अपने इमैजिनेशन को रवानगी देने के लिए ख़ूब सारा कॉन्टेन्ट खोज भी लिया। इससे पहले जब भी मैंने एक-दो बार कोशिश की थी, जल्दबाज़ी में की थी। उस वक्त मुझे जानकारी कम थी (यानी मैं अज्ञान थी) और बहुत मोटिवेटेड भी नहीं थी (यानी प्राइवेसी का मसला था)।
मुझे ये भी याद है कि वैसे रोमांटिक उपन्यास जिनमें सेक्स का खुला विवरण नहीं होता था, मुझे लगता था कि मेरे साथ धोखा हुआ है। मैं सोचती थी, ‘कितनी घटिया किताब थी यार! सैम और जेन ने सेकेंड हाफ में तो कुछ किया ही नहीं। ये सब था क्या आख़िर?’ मुझे लगने लगा कि मैं ऐसी किताबें सिर्फ़ प्लॉट के लिए ढूंढने का बहाना करके ख़ुद को ही बेवकूफ़ बना रही थी।
मुझे किताबें पढ़ना बहुत पसंद हैं। इसलिए मैंने तय किया कि मैं ख़ुद से ईमानदार रहूंगी और मैंने किताबें चुनते हुए अपने दिमाग में दो तरह की श्रेणियां बना लीं – एक, जिससे दिमाग़ और बुद्धि को खुराक मिले और दूसरी, जिससे ख़ुद को मज़ा आए। (वैसे इरॉटिका के लिए क्यू यही है… सेल्फ़-स्टिम्यूलेशन, ख़ुद को उत्तेजित करना)।
मुझे बहुत जल्दी समझ में आ गया कि पॉर्नोग्राफी से मुझे बहुत उत्तेजना नहीं मिलती (हालांकि मैंने पॉर्नोग्राफी ख़ूब देखा)। उसमें किसी किस्म का मज़ा नहीं था, सीन्स में कोई गहराई या क्रिएटिविटी नहीं थी (यहां तक कि डायलॉग भी एकदम घिसे-पिटे हुए थे)। ऊपर से ऐसा लगता था कि इसे ख़ासतौर पर पुरुषों को ध्यान में रखकर बनाया गया है।
फिर मुझे और भी चीज़ें मिलने लगीं। जैसे कि, ऐनिमेटेड सेक्स पर कुछ कॉन्टेन्ट। जैसे कि, वेल्कम टू द वर्ल्ड ऑफ़ हेन्ताई [http://www.japanpowered.com/japan-culture/hentai-what-is-it]। बदकिस्मती से ये भी फीमेल-फ्रेंडली नहीं है (और जापानी में है)। लेकिन मुझे लगता था कि ये रेग्युलर पॉर्न से बेहतर है। क्यों? क्योंकि इसमें बिल्ड-अप ज़्यादा था, फोरप्ले ज़्यादा था, और गहराई ज़्यादा थी। मुझे समझ में आ गया था कि मेरी ये पसंद दरअसल इरॉटिक नॉवलों से आती है और मुझे एक लंबे वक्त तक एक्स्प्लोर करना, एक-दूसरे को और बेहतर समझना, मुझे तब भी पसंद था और अब भी पसंद है। अलग-अलग लोग, अलग-अलग किस्म के स्ट्रोक, है न?
पॉर्नोग्राफी से जुदा, इरॉटिक नॉवलों में (और अच्छे नॉवलों में) सबकुछ दो लोगों के एक-दूसरे पर काबिज़ हो जाने तक ही सीमित नहीं रहता। उसमें एक किस्म का उत्साह, एक किस्म की रचनात्मकता होती है जो आपको उन दो लोगों की कहानियों को इतने करीब से जोड़ देती है। उसमें आपको उत्तेजित करने की ताकत होती है, आप सिर्फ़ दिमाग से ही नहीं बल्कि शरीर से भी उससे जुड़ जाते हैं। कई बार आप सेक्स के अलग-अलग स्टेज में ख़ुद को उड़ता हुआ सा भी महसूस करते हैं। ‘सिहरन बढ़ती गई और जिस्म पिघलता गया’ हर हाल में एक घिसे-पिटे ‘बहुत मज़ा आया! से बेहतर सुनाई देता है।
इससे मुझे समझ में आया कि सेक्स सिर्फ एक बेडरूम एक्टिविटी ही नहीं है जहां एक आदमी एक औरत पर चढ़कर हांफ रहा होता है। सेक्स दो लोगों के बीच का वो रिश्ता होता है जहां वे दोनों एक-दूसरे की उत्तेजना और ख़ुशी के बारे में सोच रहे होते हैं उसी अंतरंगता, बल्कि कई अलग-अलग तरीकों से ख़ुद को भी ख़ुशी दे रहे होते हैं।
शुरु शुरु में मैं मैस्टरबेशन को लेकर, या यूं कहें कि मैस्टरबेशन में ख़ुद को इन्डल्ज करने को लेकर पूरी तरह श्योर नहीं थी। कभी ऐसे बच्चे को देखा है जो किसी दूसरे बच्चे को धक्का दे देता है और फिर तुरंत ख़ुद को बचाने के लिए कहता है कि उसने कुछ भी नहीं किया? मेरी भी हालत बिल्कुल ऐसी ही थी। मैं कर तो रही थी, लेकिन कहती रही कि ‘मैं करती ही नहीं!’
वैसे बात सिर्फ इतनी थी कि मैं कुछ भी गलत नहीं कर रही थी। न कोई मुझसे कोई सवाल पूछ रहा था। लेकिन फिर भी मैं ख़ुद को बचाने में लगी हुई थी। और ये अजीब सी बात है क्योंकि मैं ख़ुद को पसंद करती तो हूं ही! इसके अलावा, मैंने ये भी देखा कि मैं जितना ज़्यादा ख़ुद पर संदेह करती रही, उतना ही कम मज़ा मुझे इस तजुर्बे में आता रहा।
स्ट्रोक्स की बात करें तो शुरुआती हिचकिचाहट के बाद इस तरह ख़ुद को सेक्सुअली एक्सप्लोर करना हमेशा एक मज़ेदार अनुभव रहा। मुझे महसूस हुआ कि मेरा जिस्म गहरी उत्तेजना पैदा करने की काबिलियत रखता था। अपने पहले ऑर्गैज़्म के बाद मेरा बाकी का डर या संदेह भी पूरी तरह ख़त्म हो गया।
एक रिदम बनाना और ख़ुद के साथ सहज होना इस तकनीक का सबसे मुश्किल काम है। उसके बाद सबकुछ अपने आप आसानी से होने लगता है। ऑनलाइन आर्टिकलों के ज़रिए अपने शरीर, और ख़ासकर, योनि की बनावट के बारे में जानकारी मिली जिससे मुझे समझ में आया कि कुछ तरीके कैसे मेरे लिए कारगर थे और कुछ क्यों असफल रहे। ऐसे आर्टिकल पढ़ने के बाद मेरे आत्मविश्वास में भी इज़ाफ़ा हुआ।
अगर आप इरॉटिका एक्स्प्लोर कर रहे हैं तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि आपको कुछ वर्जनाओं से वास्ता न पड़े। इसके अलावा आपके सामने अलग-अलग किस्म को इरॉटिका कॉन्टेन्ट भी आएगा, जैसे गे/लेस्बियन/ट्रांसजेंडर इरॉटिका, बीडीएसएम, थ्रीसम, ऑर्गी वगैरह। जब मैंने पहली बार थ्रीसम के बारे में पढ़ा तो अपने भीतर एक नए किस्म की उत्तेजना महसूस की। मैं इतनी ही हैरान थी कि मुझे थ्रीसम के बारे में पढ़ना बहुत अच्छा लगा।
अभी तक मेरे लिए सेक्स का मतलब दो लोगों के बीच का अंतरंग रिश्ता था। मुझे इस बात का भी डर था कि मैं कहीं व्यभिचार की किसी ऐसी जगह पर तो नहीं आ गई हूं जहां से वापस लौटकर जाने की कोई उम्मीद न हो। फिर मेरी एक दोस्त ने मुझे एक नया नज़रिया दिया। उसने कहा कि ये सिर्फ़ एक फैंटसी है और मैं बेवजह इतनी परेशान हो रही हूं। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि एक नहीं बल्कि दो पुरुष आपको प्यार कर रहे हैं… और फिर ये सुनते ही मुझे बेहतर महसूस होने लगा।
वैसे एक और ज़रूरी बात, इस एक अनुभव ने मुझे अपने सेक्सुअल चुनावों को और बेहतर समझने के लिए कुछ सवाल भी दिए। मुझे क्या पसंद था और मेरी सीमाएं क्या थीं… इससे ज़्यादा ज़रूरी बात ये कि मुझे समझ में आ गया कि मुझे गैर-पारंपरिक या स्कैंडलाइज़िंग लिटरेचर सिर्फ इसलिए ही पसंद नहीं था क्योंकि उन्हें पढ़ने में मुझे मज़ा आता था। बल्कि इसलिए भी पसंद था क्योंकि उसके किरदारों में एक किस्म की गहराई होती थी (वैसे मैं एक और बार गहराई की बात कर चुकी हूं)।
और अगर आपने मैस्टरबेशन को एक्स्प्लोर किया है तो सेक्स टॉय के बारे में सोचना या पता करना लाज़िमी है। पता नहीं क्यों, मैं जब भी सेक्स टॉय के बारे में सोचती हूं तो मेरे दिमाग में एक ब्लो अप डॉल की तस्वीर चली आती है (और आप ख़ुद पता करें कि ये ब्लो अप डॉल क्या है)। ख़ैर, सेक्स टॉय को डिज़ाईन ही उत्तेजित करने के लिए किया जाता है।
पहली बार एक इरॉटिक नॉवल के ज़रिए मुझे डिल्डो के इस्तेमाल के बारे में पता चला था, जहां एक कपल अपनी सेक्सुअल उत्तेजना को और बढ़ाने के लिए और एक-दूसरे को समर्पण के लिए तैयार करने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। उसके बाद मुझे कई सारे ऐसे अलग-अलग औजारों के बारे में पता चला जो उत्तेजना को बढ़ाने में सहायक होते हैं (और आपकी चाहना के हिसाब से आपको प्लेज़र दे सकते हैं)। हालांकि मेरे पास ऐसा कोई इंस्ट्रूमेंट है नहीं, लेकिन मैं ऐसी किसी चीज़ का प्रयोग ज़रूर करना चाहूंगी।
मैं कभी भी अपने दोस्तों से सेक्स के बारे में बात करने से हिचकिचाती नहीं थी। मुझे जल्दी ही पता चल गया कि मैं इस बारे में और लोगों से ज़्यादा जानकारी रखती हूं। लेकिन फिर भी अपने शरीर को बेहतर जानने से मैं फिर भी हिचकती रही। इस हद तक कि लॉन्ज़री शॉपिंग करने में भी मुझे शर्म आती थी। लेकिन अब मुझे ब्रा खरीदने में मज़ा आता है और मैं सोचने लगी हूं कि मेरे पास और थॉन्ग्स क्यों नहीं हैं। कई बार ये सोचकर ही कि मैंने अपने कपड़ों के नीचे क्या पहन रखा है, मुझे और सेक्सी महसूस होता है।
और हां, मैंने अपनी पहली ब्राज़ीलियन वैक्सिंग भी हाल ही में कराई। जब से मैंने उसके बारे में पढ़ रखा था, इरादा बना लिया था कि मुझे तो ये ट्राई करना ही है। मैं आज तक कभी किसी के सामने पूरी तरह नंगी नहीं हुई हूं और इससे पहले घर पर ही वैक्सिंग करती रही हूं। पहली बार मैंने किसी अजनबी के सामने अपने जिस्म को इस तरह खुला रख दिया।
ब्राज़िलियन वैक्सिंग का ये तजुर्बा मज़ेदार तो था लेकिन बहुत दर्दनाक भी था। और जो बातें मैंने अभी तक सुन रखी थीं, वो वाकई में सही साबित हुईं। मुझे वाकई अहसास हुआ कि अपने ‘हैप्पी टाइम’ में मैं ज़्यादा उत्साहित और ख़ुश थी। ये वाकई में हुआ या इसलिए हुआ क्योंकि मैंने अपने दिमाग़ में ये तय कर रखा था, इससे मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। जो भी था, मुझे तो बहुत मज़ा आया।
मैंने कहीं किसी लड़की का कमेन्ट पढ़ा कि ब्राज़िलियन वैक्स कराने के बाद वो और ज़्यादा आत्मविश्वास के साथ अपने प्रेमी के सामने कपड़े उतार पाती है। अब मुझे उसकी बात समझ में आती है।
मैंने आज तक सेक्स नहीं किया और चाहती हूं कि सिर्फ़ शादी के बाद सेक्स करूं (हां! मुझे मालूम है आप क्या सोच रहे हैं!). ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि मैं किसी बहुत धार्मिक या बहुत दकियानूसी परिवार से आती हैं (हालांकि मैं आती हूं)। एक प्वाइंट के बाद आपको लगने लगता है कि ये च्वाइस आपकी होनी चाहिए कि आप वो चीज़ें मानना चाहते हैं नहीं जो आपको सिखाई गई हैं।
बात ये है कि मुझे अपना भरोसा और ज़िन्दगी के लिए तय किए गए कुछ मापदंड अच्छे लगते हैं और मुझे लगता है कि मैं शादी के बाद सेक्स के चुनाव को ही चुनना चाहूंगी। ये चुनाव मेरा है। और ये चुनाव भी मेरा है कि सेल्फ-एक्सप्लोरेशन मुझे अपने बारे में और अपनी सेक्सुएलिटी के बारे में और आत्मविश्वास देता है।
मैं ऐसे लोगों को जानती हूं जो सेक्स कर तो रहे हैं लेकिन जो पूरी तरह पुरुष के रेस्पॉन्स पर निर्भर करते हैं या सेक्स को बस एक काम मान लेते हैं जो कि बस किसी तरह कर देना है। इन दोनों मामलों में वे अपनी ही जिस्म से पूरी तरह कटे हुए होते हैं। अपनी सेक्सुएलिटी को लेकर इस तरह की हिचकिचाहट और शर्म की वजह से आप ये भूल जाते हैं कि ये एक्ट कितना ख़ुशनुमा, कितना अच्छा और दिलचस्प भी हो सकता है।
ख़ुद को इस तरह समझना एक नए किस्म की आज़ादी है – ख़ुद को इस तरह समझने की आज़ादी। मुझे मालूम है कि मेरा ये आत्मविश्वास मुझे शादी के बाद मेरे पार्टनर के साथ बेहतर सेक्सुअल तालमेल बनाने में मेरी मदद करेगा।
अभी तक मैंने अपने शरीर को एक्स्प्लोर करने में जो कुछ भी नया किया है, इन कोशिशों ने मुझे अपने शरीर और ख़ुद को लेकर बेहतर महसूस कराया है। और मुझे लगता है कि सेक्सुअल होने का मतलब मानसिक तौर पर ख़ुद को उत्तेजित कर पाना और अपने मन से अपने शरीर को जोड़ पाना, उसे और करीब से, और अंतरंगता से जान पाना, उसका लुत्फ़ उठा पाना है।
23 साल की रोग़ हसीना ख़ूब पढ़ती है (कॉमिक्स भी) और संगीत, फ़िल्मों और बिल्लियों को लेकर पक्षपाती हैं। इसके अलावा आप मैस्टरबेशन और टेन्टेकल सेक्स के बीच का संतुलन समझने की कोशिश भी कर रही हैं।
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