लेख – ओर्गास्मिंग हरमाईनी द्वारा
चित्रण – शिखा श्रीनिवास द्वारा
अनुवाद – प्राचिर कुमार
इस अफलातूनी ‘ओ’ यानि‘ओर्गाज़म’ को ढूँढने का जादूई सफ़र कैसा होता है ? क्या अपने ओर्गाज़म को ढूंढते हुए हरमाईनी दिल ओ बदन को हिला देने वाले उस एहसास को महसूस कर पायेगी? या फ़िर जितना सुख मिल रहा है, उस के मज़े लेके, उस बड़े धमाकेदार अंदाज़ वाले उन्माद की तलाश छोड़ देगी ?वो शायद थोड़ा ये भी करेगी, थोड़ा वो भी….
दोस्तों के मामले में मैं हमेशा ही काफ़ी लकी रही हूँ | चाहे स्कूल हो या कॉलेज | दिल की बात खुल कर बोलनी हो, कोई एडवाइस चाहिए, मेरे दोस्त हाज़िर रहते हैं | या वैसे दो बोल सुनाने भर के लिए ही, जो बस दिल को ठंडक दे दे | हम हर तरह की बातें करते – “जब मैं हस्तमैथुन करती हूँ, तो ओर्गाज़म(चरम सुख) का मज़ा नहीं मिलता | पर जब वो ऊँगल करता है तो बाई गॉड, ओर्गाज़म का मज़ा आ जाता है”: “ओ तेरी, तुमको कैसे नहीं पता चलता जब तुमको ओर्गाज़म होता है”; “हेयरब्रश का पिछला भाग अपने अन्दर डालो और उसी वक्त अपने भगशेफ के जादूई मटर को भी रगड़ते रहो,” और अपने पैरों की ऊँगलियों पर नज़र रखना – वो मुड़ीं और सुकड़ीं तो तेरे अन्दर भी कुछ कुछ हुआ समझो.. मैंने एक आर्टिकल में पढ़ा था |”
हम ग्यारवीं कक्षा में थे | और आपस में हस्तमैथुन और अपने पहले ओर्गाज़म के बारे में बात कर रहे थे | और यह पहली बार नहीं कर रहे थे| मैं चुपचाप अपने दोस्तों की बातें सुन रही थी | उनके मज़ेदार आपबीती पर हँस रही थी| बीच-बीच में सुनाने वाले की टांग भी खींच रही थी | मैंने अपनी बेस्ट फ्रेंड ‘एस’ की तरफ देखा| वो भी मुझे देख रही थी| वो और मैं एक ही नाव पे सवार थे | दोनों पक्की तरह से तय नहीं कर पा रहे थे, कि कभी ओर्गास्म/उन्माद हुआ है या नहीं| ये तो पता था कि मुझे किस तरह छुआ जाना पसंद आ रहा था पर जिस धमाके पटाखे की सब बात कर रहे थे, उससे चकरा जाती थी | वो ओर्गास्म जिससे शरीर में करंट दौड़ जाता है! उस रात मैंने अपने सबसे अच्छी सलाह देने वाले दोस्त, गूगल से पूछा, “खुद को कैसे पता चलेगा की ओर्गाज़म हुआ है?”गूगल ने गूगली फ़ेंकी और बताया कि जब होगा तो पता चल जाएगा | गूगल की बात तो मान ली, पर जवाब तो अब भी नहीं मिला |
उस वक्त सेक्स, हस्तमैथुन और उस छलिये ओर्गाज़म के बारे में, जो भी पता था वो सब मेरी ज्यादा अनुभवी दोस्तों की मेहरबानी | हम हर एक चीज़ के बारे में बात करते थे| लोगों के पहले रोमांटिक और सेक्स के अनुभव के बारे में बात करना, हमारा सबसे पसंदीदा काम था| इन सब ज्ञानियों में से एक ‘एम’ थी | उसने कुछ समय अमेरिका में पढ़ाई की थी | जहां उसे सेक्स एजुकेशन का ज्ञान भी मिला था | और वो वही ज्ञान हम अज्ञानियों की झोली में बड़े प्यार से डालती थी| हमारे ग्रुप में जो भी जानकारी मिलती थी, हम सब उसे घुट्टी की तरह पी जाते थे| चाहे वो साँस रोक देने वाले हस्तमैथुन वाली कहानियाँ हों, या किसी की जोखिमों से भरी रोमांटिक दास्ताँ | हम सब हर कहानी को फील करते थे| कभी कभी इकरार तक की सारी दास्ताँ, की आपस में एक्टिंग भी करते थे | भले ही मैंने अब तक ओर्गाज़म का सुख ना भोगा हो, पर उन सबकी बातें सुनकर एक बात तो पता चल गयी थी| कि जब उन्माद होगा तो कैसा फील होगा |
तो जब मैंने हस्तमैथुन किया तो मुझे वो खुश कर देने वाली धमाकेदार फ़ीलिंग क्यों नहीं आयी? जिसका ज़िक्र मेरे दोस्तों से लेकर गूगल तक, सबने किया था? और ये बात, इस तरह से, मैं उन दोनों को क्यों नहीं बता पायी |
हम आपस में काफ़ी क्लोज़ थे | पर फ़िर भी ओर्गास्म को लेके अपने कन्फ्यूषन के बारे में, मैं अपने दोस्तों से बात ही नहीं कर पा रही थी | मैंने इस समस्या का हल खुद ही ढूँढने का फ़ैसला किया| मैंने पोर्न देखा | मैंने ध्यान लगा के, सेक्स करने और ओर्गाज़म फ़ील करने के बारे में सोचने की कोशिश की | मैंने अपने बदन पे वो स्पॉट ढूँढने की कोशिश की, जो मुझे स्वर्ग की सैर करा दे | मेरे दोस्तों के अनुसार ऊँगल करने के साथ, भगशेफ के जादूई मटर को रगड़ना, तो १०० परसेंट फीलिंग आएगी | अच्छा तो बहुत लगा, पर इतना नहीं कि उन्माद की मेरी चीखें सुनकर, बाजू वाली आंटी पुलिस बुला ले| ना ही मेरे अन्दर, अपने योनि के अन्दर कुछ डालने की कोई इच्छा हुई | जैसा मेरे स्कूल की एक अनाम लड़की ने किया था | उसने केमिस्ट्री लैब में से टेस्ट ट्यूब चुरा कर गर्ल्स टॉयलेट में हस्तमैथुन किया था | सूनी सुनाई बात को सच मानें तो, कहते थे कि वो टेस्ट ट्यूब उसकी प्यास ना बुझा पाया और टूट गया | जिसके वजह से वो बेहोश हो गयी | और बाद में ससपेंड भी | बाद में पता चला की यह टेस्ट ट्यूब वाली अफवाह और भी स्कूलों में फ़ैली हुई थी |
टेस्ट ट्यूबों और बदबूदार पब्लिक टॉयलेट्स से बचते हुए, मैं उस पल की तलाश करती रही | जब सेक्स की अपनी खोज के दौरान, एक बेकाबू तड़प महसूस करूँ| मेरे मदद के लिए तैयार दोस्तों के पास सुझावों का भण्डार था | जो कि तकनीकी रूप से सही था | पर उनके कोई भी टिप्स काम न आये |
तो मैंने ‘एस’ की ओर मदद का हाथ बढ़ाया| मेरे सभी दोस्तों में से वो सबसे अलग थी | वो उनके जैसा खुलकर बात नहीं करती थी | बहुत सी बातें अपने अंदर ही दबा कर रखती थी| और कुछ होने के बहुत टाइम बाद, हमारे साथ कोई बात साझा करती थी | वो मेरी बेस्ट फ्रेंड थी| और वो एक लड़की को डेट कर रही थी | मतलब मेरे सवालों का जवाब मिलने की उम्मीद, दुगनी हो गई थी | मैं दोनों से अपने सवाल कर सकती थी | मैंने ‘एस’ से, ‘ऐ’ के साथ उसके अनुभव के बारे में पूछा | “जब ए तुम्हें छू रही थी, तो क्या तुमको ओर्गाज़म के करीब पहुँचने का एहसास हुआ?” “तुम्हें पता कैसे पता चलता है कि रुकना कब है?” मुझे बड़ा अचम्भा हुआ, वो तो मेरी ही तरह कंफ्यूज निकली | उसके मुताबिक़, जब वो दोनों थक जाते हैं, या बहुत हो जाता है, तो वो रुक जाते हैं | यानी वो धमाकेदार ओर्गास्म इनको भी अभी तक नसीब नहीं हुआ था !
गूगल ने पहले मुझे मेरी राह से भटका दिया था| पर अब गूगल स्कॉलर ने हमारी तरफ़ नए एंगल पे बॉल मारी | एक सेक्सुअलिटी की मैन्युअल में, गूगल स्कॉलर से हमारी मुलाक़ात हुई | उसके अनुसार, ऐसी बहुत सारी महिलायें होती हैं, जो बिना ओर्गाज़म के ही सारा जीवन बिता देती हैं | उस मैन्युअल के अनुसार, यह कोई बड़ी बात नहीं थी| पर इस नयी खोज ने हमें सोच में डाल दिया | शायद हम एनोर्गाज़मिक (ऐसा कोई जिसे उत्तेजित किये जाने के बावजूद, उसे उन्माद न हो ) हैं?
लगभग इसी दौरान, मुझे मेरा बॉयफ्रेंड मिला| हम मेक आउट करते और मज़ा भी आता था| पर मुझे कुछ ख़ास दिलचस्पी नहीं थी | जब भी मेरे हाथ उसको ओर्गाज़म तक पहुँचाते थे, मुझे बड़ी उत्सुकता और जलन होती थी | जो हाल उसके तन बदन में होता है, वैसे ही मुझे भी क्यों नहीं होता? उसने अपनी तरफ़ से काफ़ी मेहनत की| वो बड़े इत्मिनान से मेरे चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश करता | मैं कभी कभी झूठ मूठ की एक्टिंग करती थी, ताकि उसे यह ना लगे, कि मैं उसे उतना नहीं पसंद करती थी, जितना वो मुझे | मुझे बेशक मज़ा आ रहा था| पर मुझे वो उन्माद नहीं मिल रहा था जो मुझे उसके चेहरे पे दिख रहा था, कि उसे मिल रहा है | मुझे उस परफेक्ट पल की खोज थी | मैं देख रही थी कि क्या उसके टच में वो जादू है जो मेरे खुद के टच में नहीं | हमने ऐसी कई मस्ती वाली रोमांटिक कहानियाँ सुनी हैं, जिसमें बताया जाता है की कहीं से एक सपनों का राजकुमार आयेगा जो हमारे अन्दर की आग को जगायेगा भी, बुझाएगा भी | पर सच बोलूँ, तो मुझे खुद को छूना ज़्यादा पसंद आता था| और इस तरह की सोच रखने वाली मैं अकेली लड़की नहीं थी| मेरी कई दोस्त भी ऐसा ही फ़ील करती थीं |
कुछ महीनों बाद, हमारा ब्रेक अप हो गया | मैं आगे की पढ़ाई करने दूसरे शहर के कॉलेज जा रही थी, तो मैंने ब्रेकअप का यही कारण बताया | पर असल में, मेरा मन उस रिलेशनशिप से उठ चुका था | ब्रेकअप से पहले ही मैंने उसके नज़दीक जाना बंद कर दिया था | ब्रेक अप की बात मैंने अपने दोस्तों को नहीं बताई | पता नहीं क्यों, मुझे उनको नहीं बताना था | ऐसा नहीं था कि वो मुझे कुछ बुरा भला कहतीं या करती| पर मुझे खुद ही नहीं मालूम था कि जो मैं महसूस कर रही थी, उन्हें कैसे समझाऊँ? वैसे तो मैं ठीक थी | पर कुछ तो था जो मेरे अन्दर खटक रहा था और उसके बारे में मुझे सोचना था और सोचने के बाद ही बात करनी थी | मुझे अपने दोस्तों की हमदर्दी नहीं चाहिए थी | और ना ही मुझे दिखावा करना था कि मेरी लाइफ़ एकदम सेट थी | तो मैं ब्रेकअप की बात दिल में छुपाये, कॉलेज को चली गयी |
अब तक मुझे यकीन हो गया था कि या तो मैं एसेक्सुअल हूँ (यानी जिसे सेक्स में रुचि न हो, भले रोमांस में हो सकती है) या ये ओर्गाज़म सिर्फ़ कहानियों में हो होता है | मेरी बेस्ट फ्रेंड ‘एस’ भी इस बात पर राज़ी थी | हमने सोचा कि हो सकता है कि हमारी बाकी दोस्त भी सिर्फ़ दिखावा करती हैं | और असल में कुछ महसूस ही नहीं किया होगा | कॉलेज में भी मुझे बेहतरीन दोस्त मिल गए थे | और थोड़ी नशे से झूमती हुई रात में, अपने हॉस्टल के कमरे की सुकून में, मैंने अपने चार कॉलेज बेस्ट फ्रेंड्स के सामने, ओर्गाज़म का पिटारा खोल दिया | हम सब इसलिए इकट्ठा हुए थे क्योंकि ‘वी’ ने सेक्स के मैदान में अपनी पारी की शुरुआत की थी| यानी वो हमारे लिए सारे राज़ खोलने वाली सच की आवाज़ से कम नहीं थी | पर वो असली बात करती थी,नो बकवास | उसने बताया कि उसे मज़ा तो काफ़ी आया, पर उसके और उसके पार्टनर के लिए यह पहली बार था| इसीलिए वो कह नहीं सकती कि उन्होंने सही तरीके से सेक्स किया | आर और एन ने उसकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, कि यह बहुत कॉमन चीज़ है | उनके जिन दोस्तों ने सेक्स किया था, उनके अनुसार सेक्स का स्वाद धीरे धीरे चढ़ता है, बिल्कुल बियर की तरह | और बियर की तरह ही, पहली बार उतना अच्छा नहीं लगा|
मैंने थोड़ा संकोच कर के पूछा, “तो फ़िर ये तो हस्तमैथुन जैसा ही हुआ न?”
“क्या मतलब?”
“मतलब…मुझे नहीं लगता कि मुझे कभी असली ओर्गाज़म हुआ है| मुझे बस इतना पता है कि जब होगा तो मुझे पता लग जाएगा| पर मुझे यकीन है कि मुझे कभी ओर्गाज़म नहीं हुआ है|”
यह कोई ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं थी| मेरी दो दूसरी दोस्तों ने भी हामी में गर्दन हिला दी|
“रगड़ते जाओ, रगड़ते जाओ, पर कुछ होता ही नहीं|”
यह सुनकर, बिना किसी कण्ट्रोल के, हम सब की हँसी निकल गयी|
इस हँसी के ठहाके के बाद, जब माहौल थोड़ा शांत हुआ, तो ‘ सेक्स से नयी नयी पहचान बना के आई’ हमारी सेक्स गुरु ने कहा, कि उसके साथ भी ऐसा हुआ है| और ओर्गाज़म को इतना भाव देने की ज़रुरत नहीं है| उसने कहा कि कई सालों तक वो सोचती रही कि उसको ओर्गाज़म होते थे क्या? और हाल ही में उसे ये समझ में आया कि जो वो फ़ील कर रही थी, उसे ही ओर्गाज़म कहते हैं| “ जो अच्छा लगे, बस वो करो, ज़्यादा साइंटिस्ट बनने की ज़रुरत नहीं है|”
उसकी यह बात मेरे दिल में बैठ गयी| सोचने लगी, वाकई, इस पर मैं इतना रिसर्च क्यों करती रहती हूँ?
उस रात के बाद, काफ़ी समय तक ओर्गाज़म का ज़िक्र नहीं हुआ| छ: महीने बाद, गर्मियों की छुट्टी के ख़त्म होने पर, हम पाँच सब वापस एक रात ‘सी’ के कमरे में मिले, एक सस्ती मैजिक मोमेंट्स की बोतल के साथ|
हम सब बैठे हुए थे और मेरे मुंह से अचानक से निकला, “वी, तू सही थी|”
“तो इसमें कोई अच्चम्भा नहीं| पर किस बारे में?”
मैंने बत्तीसी दिखाते हुए कहा, “रगड़ो रगड़ो। कुछ कुछ हो रहा है|”
आखिरकार, बिना कोई मैन्युअल पढ़े, हस्तमैथुन के रिकॉर्ड को नज़रंदाज़ करते हुए, मैंने वो पल महसूस कर ही लिया| मैंने वो किया जो मुझे अच्छा लगा| बाकी सब भूल कर, मैं बस उस पल में फ्लो के साथ गयी| और फ़िर जादू हुआ| कुछ कुछ हुआ!!
बाद में ये समझी कि यह तो पहले भी मेरे साथ हो चुका है| बस तब ये नहीं समझ पायी थी कि ये मेरा ओर्गास्म है | मुझे पहले इसका एहसास इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि मेरे दिमाग में ‘ओर्गाज़म कैसे होता है’ नाम की अलग ही फ़िल्म चालू थी| जो मैंने अपने आस पास की दुनिया से देख- सुनकर बनाई थी| ओर्गास्म क्या होता है,उस सारे शोर को भूल के, अपने बदन की आवाज़ सुनके ही मैं अपने ओर्गास्म को समझ पाई | इस बात की चिंता छोड़के, कि क्या मेरी बॉडी वो सब कर रही है जो उसे ओर्गास्म में करना चाहिए| जब कोई टच करता है, तो मेरे शरीर में क्या क्या होता है, उसपे ध्यान दो | न किस इसपे कि क्या जो मैंने पढ़ा सुना है, ये उसके मुताबिक़ है कि नहीं | काफ़ी समय लगा मुझे मेरे शरीर को समझाने में, कि खुद की सुनो ! जब मैंने अपने शरीर की सुनी, तो जादू की बंद मुट्ठी खुल गयी|
जब भी उस समय के बारे में सोचती हूँ, तो मुझे अभी भी कंफ्यूज़न होता है| क्या मेरे बदन ने जवानी की पहली अंगड़ाई 13-14 साल की उम्र में ना लेके, 18-19 की उम्र में ली थी?
हैरी पॉटर पढ़ी है ? उसमें एक किरदार है, हरमाईनी ग्रेंजर | वो उस हॉगवर्ट स्कूल की चुनौतियों से जूझने के लिए बड़ा सारा रिसर्च करती रहती थी | उसपे बहुत ( बहुत ज़्यादा ?) बतियाती रहती थी | मुझे लगा मैंने भी ओर्गास्म के मामले में कुछ ऐसा ही किया | अब तक की पूरी ज़िन्दगी ओर्गाज़म के बारे में जानने में निकल गयी| ज्ञान ताकत हो सकता है पर ज़िंदगी के मज़े लेने के लिए, क्या केवल ज्ञानी होना काफ़ी होता है? अपने मन में झांकना भी ज़रूरी है, अपने को समझना ज़रूरी है | और इसके लिए थोड़ा एकांत चाहिए, थोड़ी चुप्पी चाहिए |
मेरा पहला असली वाला ओर्गाज़म तब हुआ था, जब मैं अपने रूम में अकेली थी | ना ही कोई दोस्त थे और ना कोई डिस्टर्ब करने वाले विचार थे | और अकेलेपन ने काफ़ी मदद की| मैं किसी बाहरी संकेत का इंतज़ार नहीं कर रही थी | ना ही किसी दोस्त की सलाह, ना ही मेरे दिमाग में बनी हुई ओर्गाज़म सूचक लिस्ट | मैंने बस खुद की और अपने शरीर की सुनी|
उस पल से मेरे लिए ओर्गाज़म का आनंद पहले से थोड़ा और अन्तरंग हो गया| मुझे समझ में आया कि कुछ एक्सपीरियंस को लोगों से उसी समय बांटना ज़रूरी नहीं | उससे वो एक्सपीरियंस समझ के और बाहर हो सकते हैं | उनके साथ खुद वक़्त बिताना पड़ता है, उन्हें समझने के लिए | पहले खुद समझो, फ़िर अपने करीबियों से शेयर करो| जानती हूँ, मैंने अपने पहले ब्रेकअप के बारे में किसी को नहीं बताया था | उसे बताने के लिए मेरे पास सही अलफ़ाज़ नहीं थे | और मैं नहीं चाहती थी कि मेरी कहानी मेरे दोस्तों के तजुर्बों के रंग में रंग दी जाए | वो मेरे को जिस नज़र से देखते थे, मैं नहीं चाहती थी कि वो उस नज़र से ही कहानी को समझें और मुझे समझाएं | दर्द बांटने से सुकून मिलता है| पर कभी कभी, जब भी मैं अपने दिल की बात शेयर करती हूँ, मेरा तजुर्बा अपनी असलियत खोने लगता है, किसी और का नज़रिया उसपे हावी होने लगता है | ये शायद इसलिए होता है कि हम हमेशा चाहते हैं कि सब कुछ साफ़ साफ़ बयान हो, हम अपनी कहानी यूं सुनाएँ कि लगे कि हम कण्ट्रोल में हैं | जो बातें सबसे ज़्यादा सुख देती हैं, वही सबसे इमोशनल भी होती हैं| उनको वैसे ही रहने देना चाहिए | इन बातों की असलियत को बनाये रखना चाहिए, उन्हें किसी और की सोच के ढाँचे में फिट नहीं करना चाहिए | वो बातें, मेरी सच्चाई है| जो सिर्फ़ मैं ही समझ सकती हूँ |
मुझे अभी भी अपने दोस्तों के साथ बात करना और शेयर करना, अच्छा लगता है | सेक्स में क्या पसंद-नापसंद से लेकर, मज़ेदार हादसों तक, सब डिस्कस करते हैं | अपने पार्टनर्स के बारे में डिटेल डिस्कस करते हैं | पर मैं कुछ बातें ,जानबूझकर नहीं बताती हूँ| मेरी बात का वो हिस्सा, सिर्फ मेरा है| वो एहसास जो मेरे दिल से जुड़ जाता है, वो बातें जो मुझे गहराईयों तक छू जाती हैं | जो मैं किसी और के साथ शेयर नहीं करूँगी | मानती हूँ कि आज़ादी का एक लक्षण है, बेधड़क खुल कर सब कुछ कह पाना | पर अगर हम किसी (की) सोच पे खरे उतरने के लिए खुलासा कर रहे हैं, तो ये असली आज़ादी नहीं | क्या और कितना बोलना है, उसका ख्याल रखना भी एक आज़ादी है | कभी कभी हम कुछ बातों के बारे में बात नहीं करते, क्योंकि उनके तार हमारे दिल के अन्दर तक जुड़े होते हैं| जिनकी नुमाइश नहीं की जा सकती | टूटने का ख़तरा रहता है | अपने बारे में इस तरह की जानकारी होने का मज़ा ही अलग है | मुझे क्या- क्या मज़ा देता है ? खुद के शरीर को इस तरह जान लेना, जैसा और कोई न जान पाए! या अपने इमोशंस और अनुभवों को खुद पहचानना ना कि दोस्तों की सलाह का इंतज़ार करना | इन सबने मुझे एक अनकही अनसुनी जगह पे ला दिया है |
हाँ लेकिन अपनी निराशाओं के बारे में बतियाने से, बहुत मदद भी मिलती है| अगर नहीं मिलती तो, “रुक्मणि रुक्मणि, वहां रगड़ा, पर कुछ न हुआ” वाला जोक कैसा बनता | अब जाके पता चला कि जब लग रहा था कुछ नहीं हो रहा, तब भी कुछ कुछ हो रहा था, यार |
ओर्गाज़म की तलाश करती हरमाईनी तेईस साल की लड़की है, जिसे बुक्स. फिल्में, सड़े जोक्स और घुटने पर लगने वाले कास्ट बहुत पसंद हैं| उन्हें चाय की प्याली या कॉफ़ी के मग या कभी कभी दोनों के साथ पाया जा सकता है|
One of best ways to talk bout sex-ed which I feel is very much needed in our so much conservative society / world …….
Such a beautiful and intimate piece of writing which probably gave me a reason to give my greedy r&d to rest