मर्दों वाली बातें: वो बातें जो लड़कों ने हमें बताईं, अपने अहसासों के बारे में - Agents of Ishq

मर्दों वाली बातें: वो बातें जो लड़कों ने हमें बताईं, अपने अहसासों के बारे में

हमने 20 से 25 की उम्र के बीच के 25 युवाओं के एक समूह की लखनऊ से वाई पी फाउन्डेशन के महीने भर चलने वाले मर्दानगी के कार्यक्रम के तहत एक कार्यशाला चलाई।

क्योंकि हम लोग ऐसे अड़ियल एजेन्ट्स ऑफ़ इश्क़ हैं, जो कभी सुधरने वाले नहीं हैं, #मर्दोंवाली कार्यशाला के हमारे हिस्से में हमनें ये बातें खोलने की कोशिश कीं, कि आख़िर जवाँमर्द क्या महसूस करते हैं मोहब्बत, वासना, रिश्ते, समाज और इन सबके रूबरू, मर्द की जगह के बारे में।

सारे मर्दों ने अपने को विषमलैंगिक के रूप में पहचाना, उस एक ने भी जिसने पुरुष और महिलाओं, दोनों के साथ सम्भोग किया था।

उनकी कही कई बातों में से, पहले दिन की कुछ बातें यहाँ प्रस्तुत हैं :

1. लड़कियों के बारे में क्या चीज़ आपको दुविधा में डालती है ?

उनके सारे उत्तर उसी चीज़ पर जा रुके – अनकही, अस्पष्ट बातों समझ पाने में उन्हें दिक़्क़त पेश आई।“ लड़कियाँ घुमावदार बातें करती हैं। ”“ वो ठोस जवाब नहीं देतीं। ” “ उनके एहसास हमेशा मिले जुले होते हैं। ” साथ साथ, एक शक़ की लहर भी उनकी बातों में थी – क्या वास्तव में वो किसी और में दिलचस्पी रखती है ?

 

2.  रिश्तों के बारे में सबसे आघातपूर्ण क्या होता है ?

अधिकांश को डर था – उनके साथ धोखा/अविश्वास होने का। कुछ कम लोगों को रिश्तों के ख़त्म होने और उसके बाद के अकेलेपन और विरक्ति का डर था।

3. सेक्स के विषय में क्या चीज़ आपको भयभीत करती है

बहुतों ने रोग होने की आशंका जताई, कईयों ने ऐड्स कहा, बाक़ियों ने स्पष्ट तौर पर कहा, असुरक्षित सेक्स से रोग होता है। कुछ ने अनचाहे गर्भधारण का भय जताया। बहुतों को दूसरे लोगों के इस बारे में जान जाने के नतीजे से डर लगा। एक दो ने फिर से धोखे की आशंका जताई।

 

4.  सेक्स के बारे में सबसे अच्छी बात क्या है ?

कुल  50% ही थे जिन्होंने कभी सेक्स किया था। बाक़ी बचे हुए लोगों का सोचना था कि ये मुक्ति और ताज़गी या संतुष्टि और आनंद देता है। एक शख़्स ने महसूस किया कि चुम्बन इसका सबसे बेहतरीन हिस्सा है। और सिर्फ़ एक ने ही फिर महसूस किया कि ये रिश्तों में जुड़ने का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है।

 

5. आप कितनी बार इश्क़ में पड़ सकते हैं ?

क्योंकि हम जहाँ भी जाते हैं, वहाँ यही सुनने में आता है कि सच्चा प्यार सिर्फ़ एक ही बार होता है, बाक़ी सब मिथ्य है, तो अब, हम ये सवाल, जहाँ भी जाते हैं, वहाँ  अवश्य करते हैं। सबने इस बात पर हामी भरी – सच्चा प्यार सिर्फ़ एक बार होता है। शेष सब कुछ सिर्फ़ जिस्मानी, कमतर और मिथ्य होता है। उनकी इस बात से साफ़ लगा कि एक वर्गीकरण किया गया है, इन भावनाओं का, एक तारतम्य को खोलते हुए। सिर्फ़ एक व्यक्ति ने कहा कि प्यार  कई दफ़ा हो सकता है और एक को इस मामले की कोई परख नहीं थी।

 

6. वैसे प्यार होता क्या है ?

एक या दो लोगों ने कहा कि वे कभी प्यार में पड़े नहीं हैं। बाक़ी लोगों की विभिन्न कल्पनाएँ थीं – इनमें से कुछ लम्बी अवधि तक चलने वाले रिश्तों के हक़ में थे, ऐसा प्यार जिसके सहारे पर भरोसा हो। जो कि गिना जा सकता था। बाक़ी लोगों का मानना था कि वो एक रूमानी, इन्द्रिययुक्त भावना है जो बस बिन बुलाए आती है,और एक ने उसे

उसे अक्षरबद्ध हिन्दी की कविता की तरह (ग्राफ़िक देखिए) पढ़ा, जो चाहत, परस्पर जुड़ाव, प्रेम-प्रणय, समावेश और समर्पित सम्बन्धों से बनी होती है।

 

7. पहला क़दम किसे उठाना चाहिए ?

एक सवाल, जो सभी विपरीत-लिंगकामी समाज में उत्पात मचा देता है – एक रिश्ते में पहला क़दम किसे उठाना चाहिए। वहाँ इसपर कोई स्पष्ट मत नहीं था, पर उस पल के दबाव को साझा किया जा रहा था। उस पल और उस पहले इशारे करने के सन्दर्भ में पर्सनेलिटी का ज़िक्र बार-बार हो रहा था। उस पल और उस पहले इशारे करने पर अपने को महसूस होती अतिसंवेदनशीलता का ज़िक्र भी बार-बार हो रहा था। कुछ ने महसूस किया कि लड़कों को ये करना चाहिए, क्योंकि समाज में ऐसी उम्मीद की जाती है। बहुतों ने महसूस किया कि औरतों को ये करना चाहिए क्योंकि उन्हें पढ़ पाना बड़ा कठिन होता है। कुछ ने ये पहेली प्रस्तुत की कि चाहत का एहसास जिसे पहले हो, पहल उसे ही करनी चाहिए।

 

8. नामंज़ूरी का सामना आप कैसे करते हैं ?

नामंज़ूरी को संभालने की परेशानियाँ हमारी बातचीत का एक ख़ास हिस्सा रहीं। जवाबों का दायरा विस्तृत था। कोई आत्मसंयमी – यानि ‘बर्दाश्त करना मुश्किल पर संभालना ज़रूरी’ का पक्ष लेता तो दूसरा चोट लगने पर कैसे आपको दोबारा कोशिश नहीं करनी चाहिए की बात छेड़ता। कि नामंज़ूरी पर कैसे आपको अपने वजूद में कैसे एक कमी लगने लगती है। एक छोटी संख्या ने दार्शनिक रुख़ अपनाया और कहा कि आपको बस दूसरी संभावनाओं की ओर मुड़ जाना चाहिए।

 

9. क्या संभालना ज़्यादा कठिन होता है – ख़ुशी या ग़म ?

अब हो सकता है कि ये एक बेतुका प्रश्न जैसा दिखे, जिसका जवाब हर कोई जानता है। लेकिन हमारी इस बातचीत से हमें ये पता चला कि अपने को झूठी आशाओं, दिल के टूटने के दर्द और भावनात्मक मुश्किलों से बचाने के लिए कईयों को यूँ लगा कि बेहतर यही है, कि किसी भी भावना को ज़्यादा न पनपने दें। जवाब बिलकुल आधे-आधे (50-50) थे।  आधे लोगों को ख़ुशी का ज़्यादा डर था क्योंकि ख़ुशी का चला जाना उन्हें निश्चित लगता था।

 

10. आप एक तय की हुई शादी पसंद करेंगे या प्रेम-विवाह ?

ये प्रश्न 30 – 30 – 40 के अनुपात में बंट गया। 30% ने माना कि उन्हें प्रेम-विवाह करना चाहिए। 30% ने प्राथमिकता दी या उम्मीद जताई कि शादी व्यवस्थित होनी चाहिए। मगर ज़्यादातर लोग ‘ये भी – वो भी’ वाला जहान चाहते थे – जहाँ  प्रेम-विवाह हो, मगर व्यवस्थित (arranged) पर शादी के बाद प्यार हो जाए। उनके जवाबों से लगा कि वो समाज के बदलाव की लहरों में भीगना तो ज़रूर चाहते थे, पर परम्परागत सुरक्षाओं की आड़ में।

 

11. तो क्या और कौन है वो आदर्श इंसान – और किसके अनुसार ?

एक मुक़म्मल इंसान परवाह करने वाला, मददगार, दयालु, नेकनीयत, सज्जनतापूर्ण, शौर्यवान हो, ऐसा बहुतों ने कहा। चालाक और कूटनीतिक हो, ऐसा शेष ने कहा। आत्मसंयमी और बाहर से कठोर मगर भीतर से जज़्बाती हो, कुछ ने ऐसा कहा। ये युक्तियाँ समाज से और सामाजिक आदान-प्रदानों से और कभी-कभी रोज़मर्रा के जीवन में कुछ ख़ास व्यक्तियों को रोल-माॅडल मानने से आईं। एक व्यक्ति ने कहा गूगल करो, पर ये तो यही जताता है कि आपको सबसे घिसे पिटे उत्तर कहाँ से मिले । बाक़ी सभी चीज़ों के लिए – इश्क़ के प्रतिनिधि (Agents Of Ishq) हाज़िर है।

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