पसंद है तो क्या! कसम है जो उसपे कुछ लिखा! - Agents of Ishq

पसंद है तो क्या! कसम है जो उसपे कुछ लिखा!

लेख - तन्वि द्वारा
चित्रण - शिखा श्रीनिवास द्वारा

अनुवाद – नेहा, प्राचीर

हाँ, मुझे एक लड़का पसंद है। लेकिन मैं उसके बारे में नहीं लिखूंगी। दुनिया उजड़ रही है। एक वायरस हर चीज़ को और हर किसी को खत्म करने पर उतारु है। हमारे आसपास, पार्किंग में, फुटपाथ पर, चिताएं जल रही हैं। तो ये टाइम सही नहीं है। मुझे तो अभी काम वाली एक रिपोर्ट लिखनी चाहिए, इस महामारी पर आर्टिकल लिखना चहिये। या किसी दोस्त को मैसेज भेजकर, उसका हालचाल पूछना चाहिए। मुझे उस लड़के के बारे में बिल्कुल नहीं लिखना चाहिए जिसे मैं पसंद करती हूँ। और जिसने हाल में ही इक़रार किया, कि वो भी मुझे पसंद करता है।

वो लड़का जो मुझे मिलने के तीन सेकंड के ही अंदर, मुझे किस करना चाहता था। और जहां आजकल मर्ज़ी/कंसेंट का मज़ाक उड़ाया जाता है, उसने अपनी इस चाहत को सवाल बनाके सामने रखा। देखो, हमें लगने लगा था कि लड़कों में वो पुराने ज़माने वाली तमीज ख़त्म ही हो गयी है । लेकिन ये तो फ़्लर्ट करने से पहले भी, हर बार मेरी मर्ज़ी पूछता है।

नहीं, मैं उस लड़के के बारे में नहीं लिखूंगी, जिसका व्हाट्सएप मैसेज आते ही, मेरा मन नाच उठता है। जो मुझसे 1157 किलोमीटर दूर है, लेकिन फिर भी आस पास मौज़ूद हर किसी से कहीं ज़्यादा करीब है। चलो, मैं उस लड़के के बारे में नहीं लिखूंगी जिसे मैं पसंद करती हूं, लेकिन किसी को तो ये पता लगाना चाहिए कि आखिर इंटरनेट के ग्रहों की ऐसी कौन सी दशा थी, या मेरे हाथ में ऐसी कौन सी लकीर थी, जिसने हम दोनों को मिलाया। लो, फिर से फ़िल्मी बातें करने लग गई मैं! वो भी उसके लिए, जिसके बारे में तय कर लिया था कि ना, इसे तो कभी पसंद नहीं कर सकती। इसी को प्यार कहते हैं क्या?

इसे  ‘कोरोना के टाइम का प्यार’ कहा जा सकता है। पिछले साल, एक ब्लाइंड डेटिंग-पेन्डेमिक मीटिंग नाम के फेमिनिस्ट ऑनलाइन इवेंट में हमारी मुलाक़ात हुई। मेरा पहला ब्लाइंड डेट, मुझे ये मिल गया ! शायद मेरी किस्मत  सितारे कुछ ख़ास चमक रहे थे ।

नहीं तो इस मिलन का कोई चांस ही नहीं था। मुम्बई- कोलकत्ता या मुम्बई-दिल्ली या दिल्ली-मुम्बई तो फिर भी ठीक है।  लेकिन देखो तो, इस साल लॉकडाउन की वज़ह से हम 1157 कदम पे रह रहे लोगों से भी तो मिल नहीं पा रहे थे।  तो 1157 किलोमीटर की दूरी भी दूर न लगी, एक अलग तरीके से तय हो गयी ! 

मुझे वो लड़का पसंद है, लेकिन पता है, हम कभी मिले नहीं है। तो भला उसके बारे में लिखूँ ही क्यों। और अगर लिखना चाहूँ भी, तो क्या लिखूंगी! मुझे  तो ये भी नहीं पता, कि उसके साथ एक टेबल पर आमने सामने बैठकर मुझे कैसा लगेगा। उसका हाथ पकड़ना कैसा लगेगा! एक साल जिस किस का इंतज़ार किया, उससे मिलने के ३ सेकंड बाद, झट से उसे वो किस देने में।  मैं बस सोच ही सकती हूँ।

तो हाँ, मैंने सोचा है।  और मैं वो सब लिखना चाहती हूँ। उन मन में घुमड़ते नाज़ुक सपनों के बारे में! सुबह मुस्कुराते हुए उठने के बारे में। जब भी मैं उदास हूं या परेशान हूँ या बीमार हूँ, तो जैसे वो मेरी फ़िक्र करता है, उस बारे में!

लेकिन, सच तो यही है, कि मैं उसे नहीं जानती।  मैं तो सिर्फ उसके उस पहलू से वाकिफ़ हूँ, जो रोज़ मुझे मैसेज करता है, जी हां, रोज़। और वो जो इस दुनिया में हमारी क्या जगह है, उसे लेकर परेशान रहता है।  जहाँ एक दिन तो वो मेरे साथ नियम-कानून की बातें करता है तो दूसरे दिन मेरे नए सॉफ्ट टॉय ऑक्टोपस के लिए नाम ढूंढता है। मैं उस इंसान को जानती हूँ जो हर ज़ूम कॉल के लिए बिल्कुल सही टाइम पर आ जाता है, हाथ में ज़ाम और होठों पर मुस्कान लिए। वो जो मेरे साथ ड्रिंकिंग गेम भी खेलता है। “मैं कभी किसी पर इतना ज़्यादा, और इतनी जल्दी लट्टू नहीं हुई हूँ।” हां, सचमुच!

मैं उसके चेहरे को पहचानती हूँ। बचपन में ठीक उसकी आंख के नीचे लगे बॉल के उस दाग को जानती हूँ। (भगवान का शुक्र है, उसकी आंखें बच गईं)। अपने बालों को जैसे वो गिराकर रखता है, वो भी जानती हूँ।  लेकिन फिर भी मैं उसे उतना नहीं जानती, कि उसके बारे में लिख सकूं। सच!

और इसलिए मैं उस लड़के के बारे में नहीं लिखूंगी, जिसे मैं पसंद करती हूं।

बल्कि, मैं तो वो सारी वज़हें लिखूंगी, कि मुझे उसके बारे में क्यों नहीं लिखना चाहिए। तो इससे तो किसी को भी दिक्कत नहीं हो सकती, है न?

पहली वज़ह। हो सकता है, उसे ये पसंद ना आये। लेकिन जब एक राईटर प्यार में पड़ता है, तो वो अपने लिए लिखता है ना कि दूसरों के लिए। फैज़ ने अपनी माशूका के लिए शेर लिखे या खुद के लिए ? साहिर इस बात पे चौंके होंगे क्या कि उनका प्यार मुकम्मल न हुआ, पर फिर भी अमृता ने उनपे कवितायें लिखीं। एक नहीं, कई। 

मैं लिखती हूँ- “मेरे सारे सपने तुम्हारे पैरों तले पड़े हैं।” अगले ही पल ज़वाब आता है, “मैं पहला इंसान नहीं , जिससे तुमने प्यार किया है।” हम साथ में सारा के और फिल काये  (Sarah Kay और Phil Kaye ,दोनों कवी हैं, ये युगल जोड़ी अपने प्रेम के बारे में कवितायें लिखते हैं जो बहुत पॉपुलर रहीं ) देखते हैं, जो बताते हैं कि जिंदगी में प्यार के आने से कैसा फील होता है। 

लेकिन दरअसल शब्द काफी नहीं हैं। इंसान हमेशा शब्द ढूंढता है। अपनी पसंद, अपने प्यार या कभी कभी अपनी वासना के बारे में बताने के लिए। और कभी-कभी उन लड़कियों या लड़कों के लिए भी, जिन्हें हम चाहते हैं। लेकिन इस खास लड़के के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है। एक मीठी मुस्कुराहट, प्यार भरी आँखें, एक्सेंट वाली आवाज़, वो कातिलाना हंसी और कभी-कभी शर्म से लाल हुआ चेहरा! जब दुनिया खत्म हो रही हो, तब किसी ऐसे इंसान के मिलने की खुशी, चाहत, उलझनें, सबकुछ शब्दों में कैसे ढाला जा सकता है? 

 मेरे पास सच में शब्द ही नहीं हैं। इसलिए उसके बारे में ना लिखना ही बेहतर है।

मैं न लिखने में लगी हुई हूँ घूमती रहती है, तारे टकराते रहते हैं | एक और जान कोविड को कुर्बान| एक और प्यारी डेट की ख़त्म हुई दास्तान| ये शायरी कहाँ से फ़ूट रही है?

 बात को बदलते हैं| माहौल थोड़ा गंभीर बनाते हैं| मुश्किलों की बात करते हैं | जिनका हम सब सामना अभी कर रहे हैं| अपनी दिक्कतों की बात करते हैं | मेरे एक्स की बात| वो मेरी बिल्डिंग में ही रहता है| या वो एक्स, जो हमेशा टेक्स्ट करता है| डेटिंग एप्प पर तो उसपे लड़कियां मरती हैं| पर वो कहता है कि उनमें कुछ मिसिंग है, मुझमें कुछ अलग सा, कुछ ख़ास है | और मैं कमली, उसकी बातों पर यकीन भी करती हूँ|  

 मैं एक लड़के को पसंद करती हूँ| पर ना, उसके बारे में मैं नहीं लिखूंगी| क्योंकि उसे अभी तक अपने दिल की बात नहीं बताई है| बता भी नहीं सकती| जान लेगा तो उसका भी हाल मेरे जैसा हो जाएगा| दुनिया में वैसे ही काफ़ी लॉन्ग डिस्टेंस लैला मजनू मौजूद हैं| एक और की जगह नहीं| तो ना मैं उसको बताऊंगी और ना ही उसके बारे में लिखूंगी| मैं तो बस स्पोटीफ़ाय पर हम दोनों के फेवरेट लव सोंग्स वाली प्लेलिस्ट सुनकर, काम चला लूँगी| उसने प्लेलिस्ट में वो कौन सा गाना डाला था? हाँ, “इक वारी आ जा ओ यारा…” (इस साल प्यार का पैगाम, सात जन्मों के नाम)

मेरी भी ये ही तमन्ना है|

पर फ़िर सोचती हूँ कि क्या ये ही प्यार है? क्या ये प्यार सच्चा वाला प्यार है, जन्मों जन्मों वाला? कौन जाने? 

और कौन जान सकता है?

मुश्किल दिनों में 1157 किलोमीटर की दूरी, चाँद से भी ज़्यादा दूर लगती है|

 लेकिन सच तो ये ही है, कि लिखने के लिए कंट्रोल होना ज़रूरी है| पता होना चाहिये कि कहानी कहाँ से शुरू होती है और कब ख़त्म| मेरा खुद पर कोई कंट्रोल नहीं है| खुद पर क्या, ना इस महामारी पर और ना ही उस लड़के पर| कभी मैं सपनों के इन्द्रधनुष पर सवार होती हूँ और पलक झपकते ही,  दुख के बादलों की रिमझिम बारिश में भीग रही होती हूँ| मेरे दोस्त बड़े प्यार से, ‘आज’ में जीने की सलाह देते हैं| मेरा आज, जहाँ वो लड़का है| यही सच है – कि वो एक लड़का है, जिसे मैं पसंद करती हूँ| ना उससे ज़्यादा, ना उससे कम|

कई दिन, ये छोटा सा सच, अपने आप में मुनासिब लगता है |

मैं नहीं जानती इस कहने का अगला पड़ाव क्या होगा| हमारी कहने का एंड कैसा होगा| मेरे पास उस कहानी का एक ढाँचा है| बाकी समय बतायेगा|

 तो तब तक के लिए मैं नहीं लिखूंगी उस लड़के के बारे में| जिसे मैं पसंद करती हूँ|

 

तन्वी एक राइटर हैं| वो कलकत्ता में रहती हैं|

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