चुम्बन कथा : हिंदी और उर्दू #किस्सकविता की एक सैर - Agents of Ishq

चुम्बन कथा : हिंदी और उर्दू #किस्सकविता की एक सैर

आनंद पांडे द्वारा 

किस – चुम्मा – बोसा – बोकि – उम्मा, पप्पी एक नाम अनेक! लेकिन किस के सिर्फ नाम ही नहीं मायने भी अनेक होते हैं , और किस के पहले, बाद और दौरान की संवेदनाओं जैसे, सुरसुराहट, डुबगुहाहट, थरथराहट, सनसनाहट, गुदगुदाहट, कंपकंपाहट की तो कोई गिनती ही नहीं…

सिनेमा तो किस के इन मायनों और भावनाओं के साथ लुकाछिपी खेलता रहता है, कभी फूलों के पीछे से, तो कभी पंछियों के बीच में, लेकिन हिंदी-उर्दू कविताएँ इस से कोसों दूर हैं. आईये हम ले चलते हैं आपको ऐसी ही चुम्बन की एक कविता-यात्रा पर..

आखिर ये चुम्बन है क्या?

रामधारी सिंह दिनकर और अज्ञेय चुम्बन को व्यक्ति को संपूर्ण बनाने का साधन बताते हैं,

दूसरी ओर सखी लखनवी इसे एक मिठाई के समान बताते हैं ,


अब चुम्मी करना तो सीख लिया, पर जनाब ये बोसा माँगा कैसे जाये? हज़ारों हैं ख्वाइशें और उतने ही दायरे!

जनाब मीर ‘सोझ’ निहायती सरल शब्दों में कहते हैं,

बहादुर शाह ज़फर अपनी झिझक को कुछ यूँ बयां करते हैं,

अब चलिए ये किस्सी तो मांग ली पर ‘उन्का’ जवाब क्या होगा, हाँ की ना?

ग़ालिब मियाँ को तो जवाब ही नहीं मिला, बताइये!

कुछ ऐसे ही जज़्बात जनाब मिर्ज़ा रज़ा बर्क़ के भी हैं, पढ़िये

अमानत लखनवी के यार का जवाब ज़रूर उनका दिल तोड़ गया होगा, पढ़िये,

जब जवाब ना मिलता है, तब जनाब ग़ुलाम हमदानी ‘मुसहफ़ी’ जी कुछ यूँ अपने यार को उलाहने देते हैं,

और जब जवाब हाँ मिला फ़रहत एहसान साहब को, तो उनका हाल भी पढ़िये,

हाँ जी, अब अवसर आ गया है उस पहले चुम्बन का, अशोक वाजपेयी उस मौके को कुछ यूँ बयां करते हैं,

अहा हा हा! वो पहली पप्पी.. उसके बाद के एहसास को कैसे बयां किया जाये ?

ज़फर अकबाल अपने यार के जज़्बात कुछ ऐसे सुनते हैं,

सुदर्शन फ़क़ीर साब भी उस पहली रात के एहसास का अफसाना यूँ सुनते हैं,

आप इस अफ़साने को जगजीत सिंह की रूमानी आवाज़ में भी सुन सकते हैं,

पप्पी ली और लबों पर कोई निशाँ नहीं छोड़ा! बस उन्हीं निशानों की दास्ताँ स्वप्निल तिवारी यूँ सुनते हैं,

पहला चुम्मा तो खास होता ही है, पर आखिरी चुम्बन.. हमारी यात्रा का आखिरी पड़ाव, उसके बारे में अमजद इस्लाम अमजद साहब अपनी कविता, आखिरी बोसा, में कुछ यूँ फरमाते हैं,

पहला चुम्बन, आखिरी चुम्बन, थरथराते होंठों का चुम्बन, भीगे होंठों का चुम्बन, सब अपनी जगह हैं लेकिन, मुद्दे की बात को केदारनाथ सिंह जी अपनी कविता, होंठ, में बताते हैं,

Comments

comments

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *