सालिक खान द्वारा लिखित
अनुवाद: तन्वी मिश्रा
इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाए ना लगे और बुझाए न बने
(ग़ालिब! प्यार एक ऐसी आग है जो खुद ही को जला कर/चिंगारी देकर, खुद ही बुझ जाती है, और इस आग पर हमारा ज़ोर नहीं चलता) ।
चलिए अब यह मान लेते हैं कि हम एक अर्से से प्यार के कारोबार को समझने की कोशिश करते आ रहे हैं। कवियों से लेकर दार्शनिकों/फिलॉसफर्स तक, हमने तकरीबन सब कुछ आज़मा लिया है। इस निरीक्षण के ज़रिये हमने साहित्य, कविता, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और ना जाने ऐसे कौन-कौनसे दरवाज़े खटखटाए हैं। लेकिन हम अब भी यहीं हैं, प्यार के मूल तत्वों में उलझे हुए। तो शायद अब प्यार और रिश्तों/रिलेशनशिप्स को एक अलग रोशनी में देखने का समय आ गया है। कायनात की रोशनी में!
हम प्यार में क्यों डूब जाते हैं? क्या यह ग्रेविटी की अदृश्य ताकत से गिरने वाले ग्रहों और दूसरे खगोलीय पिंड/सेलेस्टियल बॉडीज़ की तरह है? क्या बहुत सारे सितारे बहुत सारे ग्रहों के साथ बहुविवाही रिश्ते में बंधे हैं? शायद हम जिसे सोलर सिस्टम बुलाते हैं, वह एक खूबसूरत अंतरिक्षीय रिश्ता है, ऐसा रिश्ता जिसके बारे में कवि कविताएँ लिखते हैं। शकेस्पियर के रोमियो और जूलिएट में, रोमियो बालकनी वाले सीन में यह पंक्तियाँ बोलता है:
“यही पूरब है, और जूलिएट सूरज है ।”
काफी हद तक ग़ालिब की ‘आतिश’ जैसे, शेकस्पीयर का प्यार के लिए काव्यात्मक रूपक, ऊष्मा या आग से जुड़ा है। दिमागी विज्ञान हमें अंदर की कहानी बताता है: मायूसी या क्रोध जैसी कोई भी दूसरी तीव्र भावना की तरह, प्यार में हमारा रक्त चाप और मांसपेशियों का खिंचाव, दोनों बढ़ जाते हैं, जिससे पसीने की ग्रंथियां उत्तेजित हो जाती हैं और हमें अधिक गर्मी महसूस होने लगती है। तंत्रिका जीव विज्ञान/न्यूरोबायोलॉजी की दृष्टी से देखें तो, प्यार से गर्मी का नाता (और उसी तरह सितारों के साथ, जो आग के बड़े गोले हैं) रूपक सेबढ़कर है, इसे एक असलियत ही समझ लो।
रात का आकाश, मेरे लिए, सितारों, ग्रहों, चाँद और उपग्रहों का एक काव्यात्मक समारोह है – बनावटी या अन्यथा। अंतरिक्ष के अनंत अँधेरे में, उनका निरंतर आवागमन नई कविताएं और डिज़ाइन बुनता है, अंतरिक्ष-समय की चादर पर रचा एक अलग किस्म का प्यार। मैंने ब्रह्माण्ड को सुना है, मेहदी हस्सन की गाई हुई एक रोमानी ग़ज़ल के रूप में। सितारे मुझसे प्यार की बातें करते हैं। मैं ग्रहों की गुनगुनाहट और उपग्रहों की सरसराहट-गड़गड़ाहट सुन सकता हूँ, तब, जब वह आकाश की परिक्रमा कर रहे होते हैं, एक दिन में सोलह बार।
शायद, खामोशी फिल्म के उस गाने की तरह, “आसमान को भी ये हसीं राज़ है पसंद।”
जब लोगों को प्यार होता है, वह ऐसी सभी भावनाओं का अनुभव करते हैं जिनको समझना मुश्किल है। आइंस्टाइन ने एक दफा कहा था कि अगर क़्वांटम यांत्रिकी/क्वांटम फिज़िक्स को शासित करने वाले क़ानून वाकई में सही थे, तो दुनिया दीवानापन को सवार हो जाती।
वैसे आइंस्टाइन ने सही कहा था – दुनिया दीवानी ही है, और प्यार भी।
१९२० के दशक के शुरुआती सालों में, विज्ञान की दुनिया इतिहास की सबसे भयंकर बहस में उलझी हुई थी। “अनिश्चितता” की अजीब और उग्र थ्योरी के अजीब सिद्धांत ने दुनिया को समझने के हमारे तरीके को हमेशा के लिए बदल दिया था, और इस विवाद के बीचों-बीच था नोबेल लॉरेटस और २०वी सदी के कुछ सबसे प्रतिभाशाली दिमागों का समूह – एल्बर्ट आइंस्टाइन, नील्स बोहर, वर्नर हैसेनबर्ग, अर्नेस्ट रुदरफोर्ड, मैक्स प्लांक, और अर्विन श्रोडिंगर।
क्वांटम भौतिकी/फिज़िक्स की निराली दुनिया
१९३५ में, मिस्टर श्रोडिंगर (जिनकी बिल्लियों के बच्चे एक ही समय पर जीवित और मृत थे) ने “एनटाँगलमेन्ट” यह शब्द गढ़ा, जिससे “क्वांटम संलिप्तता/एनटाँगलमेन्ट” नामक एक ऐसा तथ्य विकसित हुआ, जो साधारण समझ के बिल्कुल विपरीत था। क्वांटम संलिप्तता/एनटाँगलमेन्ट एक ऐसा तथ्य है जिसमें दो कण, अंतरिक्ष के सैकड़ों प्रकाश-वर्षों द्वारा अलग किये जाने पर भी, एक दूसरे से घनिष्टता से जुड़े हुए रह सकते हैं; एक में किया गया बदलाव दूसरे पर भी असर करेगा, बॉलीवुड के जुड़वाँ को लेकर लौकिक कहानियों/ड्रामा जैसे। क्या यह आपको जुड़वा २ पिक्चर की याद दिलाता है? मुझे भी नहीं। लेकिन यह डेविड धवन की वैज्ञानिक यथार्थता और कुशाग्रता को ज़रूर सामने लाता है।
एक कण को जो भी होता है उसका दूसरे कण पर भी असर हो सकता है, उन दो कणों के एक दूसरे से सैकड़ों प्रकाश-वर्ष दूर होने के बावजूद। ऐसा लगता है कि दोनों कण एक दूसरे से प्यार करते हैं – हमसफ़र/सोल्मेट्स की तरह, “जब तक हमें मौत अलग नहीं कर देती” वाले तर्क को ठेंगा दिखाते हुए; कल्पना किये जा सकने वाले सबसे छोटे माप पर बसी एक प्रेम कहानी।
आइंस्टाइन इस अनिश्चितता/अनसर्टेनिटी के बारे में अनिश्चित थे और शुरुआत में उन्होंने इस थ्योरी को खारिज कर दिया था, ऐसे “नामुमकिन” और मज़ाक उड़ाए जाने के लिए मशहूर, क़्वांटम एनटाँगलमेन्ट को “स्पुख़फ्ते फ़र्नवीरकुंग” या “दूरियों पे भूतिया कार्यवाही” बुलाते हुए। उन्होंने क्वांटम विचारों को भी खारिज कर दिया, क्योंकि “भगवान”, उनके मुताबिक़, “पासा नहीं खेलते हैं”। वैज्ञानिकों ने सभी शंकाओं को मिटाते हुए इस संलिप्तता/एनटाँगलमेन्ट – को सिद्ध कर दिया है, और अब हम क्वांटम दुनिया की अनिश्चितताओं के बारे में बहुत निश्चित हैं। आपके जी.पी.एस, लेज़र्स, स्मार्टफोन्स, या जिस कंप्यूटर का इस्तेमाल आप यह पढ़ने के लिए कर रहे हैं, वह क्वांटम फिज़िक्स के बिना कभी अस्तित्व में नहीं आते। करीब-करीब हर इलेक्ट्रॉनिक यंत्र इस अजीब थ्योरी का परिणाम है।
आज के सबसे आधुनिक और नए तकनीकी नवाचार सालों पहले किये गए उस अध्ययन का नतीजा हैं, दो कणों के “प्यार” में होने का।
प्यार नामक एक उफ़्फ़ असीम आनंद देने वाली उलझन/यूफ़ोरिक एनटाँगलमेन्ट
प्यार और क़्वांटम फिज़िक्स बिलकुल असंबंधित विषय हैं, फिर भी एक अजीब तरह से समानांतर। पहले तो, दोनों ही रहस्य्मयी हैं। दो लोग एक दूसरे से प्यार कर सकते हैं, काफी हद तक दो उलझे हुए/एनटैंगल्ड सूक्ष्माणु/सबएटॉमिक कणों जैसे, एक दूसरे के बिलकुल आसपास ना होने के बावजूद। एक दूसरे को व्यस्त मेट्रो स्टेशन पे पहली बार देखना, या अजनबियों से भरे एक कमरे में, या सोशल मीडिया पे, जब वह एक दूसरे से हज़ारों मील दूर हों। प्यार और क्वांटम संलिप्तता/एनटाँगलमेन्ट की यही खासियत है – उम्र, दूरी, और पाई की वैल्यू अंकों से ज़्यादा और कुछ नहीं लगते।
लंबे समय से बंधे विशवास, समाज किन चीज़ों को मान्यता देता है, सही और गलत के विचार, तर्क, और तार्किक विचार, प्यार या क्वांटम दुनिया में कोई मायने नहीं रखते। क्या यह आपको डरावना लगता है? मैं कहता हूँ ऐसा नहीं है। क्वांटम संलिप्तता/एनटाँगलमेन्ट शायद प्यार का सबसे बेदाग़ रूप है – ये क्वांटम रोमांस है।
अगर आप इस ग्रह के दो विपरीत छोर पर रहने वाले प्रेमियों के बारे में सोचते हैं, उनकी साझा की हुई भावनाएँ, एक दूसरे से जुड़े होने का बोध, जिस तरह से वह एक दूसरे को समझते हैं इसके बावजूद कि उनके बीच कई हज़ारों मील की दूरी है, तो यह एनटाँगलमेन्ट से कुछ कम नहीं है।
जब कोई आपकी ज़िंदगी में इतने मायने रखता है, तो दूरी के मायने मिट जाते हैं। आइंस्टाइन की अंतरिक्षीय गति सीमा बाधा को तोड़ते हुए, हमारे विचार और हमारी यादें एक सेकेंड के अंश में हज़ारों मील का सफर तय कर लेते हैं। “दूरी में डरावनी कार्रवाई” का काव्यात्मक समकक्ष। आप एक संलिप्त/एनटैंगल्ड कण को अकेले परिभाषित नहीं कर सकते; दोनों एक सातत्य पर मौजूद हैं, एक ऐसे रिश्ते की तरह जहां एक प्रेमी दूसरे के बिना, अपने आप को अधूरा मानता है। वह एक दूसरे को पूरा करते हैं – एक जीव के आधे भाग जिनको अलग नहीं किया जा सकता।
विश्व में वह एक इंसान जो आपको सबसे नज़दीकी रूप से जानता है। जो आपको बेहतर बनाता है…असल में वह ऐसा नहीं करता – आप खुद बेहतर होना चाहते हैं क्योंकि वह आपको प्रेरित करता है। उसका प्रभाव इतना शक्तिशाली है कि वह आपको प्रेरित करता है और आत्म-खोज एवं जागृति के रास्ते पर ले जाता है। यह आप ही के प्रतिबिंब जैसा है, आपके लिए ख़ास बनाया गया/बनाई गयी एक अन्तःमन/रूह। फरक नहीं पड़ता अगर आप एक ही शहर में हैं, या देश में, या कायनात में, या एक आयाम में भी- आप हमेशा एक दूसरे को ढूंढ लेंगे। जैसे कि इन दूरस्थ आत्माओं के बीच का रिश्ता अंतरिक्ष से पहले बना था, बिग बैंग से भी पुराना है और रसायन विज्ञान द्वारा परिकल्पित किसी भी आयोनिक (ionic) बॉन्ड से ज़्यादा मज़बूत है।
प्यार एक बहुत ही उलझा मुद्दा है, फिर भी इसकी सादगी खूबसूरत है, एकदम क्वांटम फिज़िक्स की तरह। वह अनिश्चितता, अव्यवस्था, अनियमितता, किसी पहले बने ‘योजना’ का ना होना ही प्यार को इतना सुंदर बनाता है। शायद इस अनिश्चितता को अपनाने की इच्छा के साथ जीना, रहस्यमयता के साथ जीना, और अस्पष्टता को स्वीकारना ज़्यादा दिलचस्प है।
जिस तरह का प्यार मैं खोजता हूँ – और जो मेरे मुताबिक़ हर कोई ढूंढता है – सही और गलत की पहुँच के बाहर है, यह आपको एक ही समय पर दूर धकेलता भी है और अपनी ओर खींचता भी है।
प्यार के बारे में मेरा विचार एक वैज्ञानिक आतंरिक गुण को अपने साथ लेकर चलता है, और मैं बहुत दुनियाओं वाली व्याख्या में विश्वास रखता हूँ जो यह कहती है कि अनगिनत ब्रह्माण्ड में अनगिनत “तुम और मैं” सातत्य मौजूद हैं, और उनमें से एक ब्रह्माण्ड में हम ज़रूर साथ हैं।
क्वांटम फिज़िक्स यह भी प्रस्ताव रखती है की हम ऐसे कणों से निर्मित हुए हैं जो ब्रह्माण्ड की शुरुआत से अस्तित्व में हैं। क्वांटम फिज़िक्स कुछ ऐसा भी कहता है जो मेरे हिसाब से फिज़िक्स के बारे में सबसे काव्यात्मक बात है: हम सब सितारों की धूल/स्टारडस्ट हैं। अगर सितारों ने दम नहीं तोड़ा होता, तो हम यहाँ नहीं होते। जीज़स का तो मालूम नहीं, पर हमारे अंतरिक्ष के आँगन में एक तारा हमारे पापों के लिए बली चढ़ गया। देखिये, वह कण १३.७ बिलियन वर्ष समय और अंतरिक्ष का सफर करते हुए यहां पहुंचे ताकि हम एक हो सकें। अगर इस ब्रह्माण्ड में नहीं, तो शायद कोई और ब्रह्माण्ड में, फेब्रुअरी के किसी उजले दिन में (फरवरी की सर्दियों की धूप में), मैं तुम्हारे लिए मीर पढ़ रहा हूँ, या शायद कार्ल सेगन।
क्या तुम मेरी बात सुन भी रहे हो?
सालिक टॉक जर्नलिज़म के सोशल मीडिया कम्युनिकेशन्स प्रमुख हैं (यानी ग़ालिब-इन-चीफ) और आप उनको @baawraman पर कविताओं, फिज़िक्स और ग़ालिब के बारे में ट्वीट करते हुए पा सकते हैं।
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